वन के मार्ग में
वन के मार्ग में
काव्यांश 1
पुर तें निकसी रघुबीर-बधू, धीर धीर दए मग में डग द्वै।
झलकीं भरि भाल कनी जल की, पुट सूखि गए मधुराधर वै।।
फिरि बूझति हैं, ''चलनो अब केतिक, पर्न कुटी करिहौ कित ह्वै?''।
तिय की लखि आतुरता पिय की, अँखियाँ अति चारु चलीं जल च्वै।।
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