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उत्तर– पुराने जमाने की बात है किसी गाँव में दो दोस्त रहते थे उनके नाम नेकीराम और फेकूराम थे नेकीराम बहुत ही नम्र, सत्य और दयालु था जबकि फेकूराम बहुत ही मतलबी और झूठा था। एक दिन दोनों दोस्त पैसा कमाने शहर निकले।उन लोगों ने बहुत मेहनत की और कम समय में उन्होंने बहुत पैसा कमाया। जैसे ही वो गाँव जाने के लिए निकले, फेकूराम के मन में एक विचार आया।क्यों ना हम अपना धन इस पेड़ के खोखले में झुपा दें और जब हम दोनों सुबह लौटेंगे तो सारा धन अपने साथ ले जायेंगे। नेकीराम तैयार हो गए और दोनों अपना धन पेड़ के खोखले में छिपा कर गाँव की और निकल पड़े।फेकूराम आधी रात को जंगल पहुँचे और सारा धन चुरा लिया। दुसरे दिन जब दोनों दोस्त धन लेने जंगल पहुँचे तो उन्हें कुछ नहीं मिला।फेकूराम नेकीराम से कहने लगा - तुमने मेरा पैसा चुराया है तो नेकीराम बोला - मैंने नहीं चुराया, मेरे पास पैसा नहीं है मेरा पैसा भी चोरी हो गया है।
नेकीराम ने चोरी से इंकार किया पर फेकूराम उसे सजा दिलाने के लिए सरपंच के पास ले गया और बोला ये चोर है मेरी मदद कीजिए हमने जो धन छुपा रखा था वो सब इसने चुरा लिया है।
नेकीराम - तुम ये कैसे कह सकते हो? फेकूराम - मेरे पास इसका सिर्फ एक सबूत है। सरपंच बोले वो सबूत कौन है।
फेकूराम बोला - वो देवदूत जो उस पेड़ में रहते है हमें उनसे पूछना चाहिए, सब लोग पेड़ के पास पहुँचे और फेकूराम जोर से बोला - ओ इस पेड़ में रहने वाले देवदूत कृपया बताईये कल रात क्या हुआ था।
पेड़ से आवाज आई - नेकीराम कल रात यहाँ आया था और सारा धन चुरा कर ले गया। ये सुन कर नेकीराम भौचंका रह गया और बोला अरे बेवकूफ पेड़ मैं तुमे सबक सिखा के रहूँगा।
ये कहते हुए नेकीराम ने लकड़ी के छोटे-छोटे टुकड़े इकठ्ठा करना शुरू कर दिया और पेड़ के चारों तरफ बिछा दिए और उनमें आग लगा दी।कुछ ही देर में फेकूराम के पिताजी चीखते हुए पेड़ से बाहर निकले। (हे भगवान मेरी मदद करो, मैं जल रहा हूँ!)
गाँव के सरपंच ने उनसे पूछा तुमने ऐसा क्यों किया तो फेकूराम के पिताजी बोले की मेरे बेटे ने मुझसे यहाँ छुपने के लिया कहा और कहा कहना की नेकीराम सारा धन चुरा कर ले गया।
दरअसल, धन मेरे बेटे फेकूराम ने चुराया है। फेकूराम के हाथ-पैर थरथराने लगे। सरपंच ने फेकूराम को सजा दी और नेकीराम को धन लौटा दिया।
 

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