Kripaya isse yathaasambhav haal karane mein meree sahaayata karen....
उत्तर -
22 अगस्त 1924 को होशंगाबाद, मध्य प्रदेश के जमानी ग्राम में जन्मे परसाई मध्यवर्गीय परिवार से आते थे। अल्पायु में ही माँ की मृत्यु के बाद पिता की भी कालांतर में एक असाध्य बीमारी के बाद मृत्यु हो गई। अब चार छोटे भाई-बहनों की जिम्मेदारी परसाई पर ही थी। इस प्रकार इनका आरंभिक जीवन गहन आर्थिक अभावों के बीच बीता। अपने आत्मकथ्य ‘गर्दिश के दिन’ में उन्होंने बचपन की सबसे तीखी याद ‘प्लेग’ की भयावहता का ज़िक्र किया है। हिन्दी साहित्य में व्यंग्य विधा के लिए, हर वर्ग के पाठक की चेतना में अगर किसी का नाम पहले-पहल आता है, तो वो परसाई जी ही हैं।
व्यंग्य विधा को अपने सुदृढ़ और आधुनिक रूप में खड़ा करने में परसाई के योगदान को आलोचकों ने एक सिरे से स्वीकार किया है। कठोर से कठोर सत्य को वे बड़ी ही सहजता से स्वीकार कर जीवन जीने की सही राह दिखाते हैं। यही उनके लेखन की विशेषता है। उन्होंने जीवन के दिखावे का तिरस्कार कर सच्चाई से सभी को अवगत कराया है। हम सभी को हरिशंकर परसाई जी के इस विशेषता का अनुकरण कर उनसे प्रेरणा ग्रहण करनी चाहिए। उनका व्यक्तित्व सभी के लिए आदर्श है।
22 अगस्त 1924 को होशंगाबाद, मध्य प्रदेश के जमानी ग्राम में जन्मे परसाई मध्यवर्गीय परिवार से आते थे। अल्पायु में ही माँ की मृत्यु के बाद पिता की भी कालांतर में एक असाध्य बीमारी के बाद मृत्यु हो गई। अब चार छोटे भाई-बहनों की जिम्मेदारी परसाई पर ही थी। इस प्रकार इनका आरंभिक जीवन गहन आर्थिक अभावों के बीच बीता। अपने आत्मकथ्य ‘गर्दिश के दिन’ में उन्होंने बचपन की सबसे तीखी याद ‘प्लेग’ की भयावहता का ज़िक्र किया है। हिन्दी साहित्य में व्यंग्य विधा के लिए, हर वर्ग के पाठक की चेतना में अगर किसी का नाम पहले-पहल आता है, तो वो परसाई जी ही हैं।
व्यंग्य विधा को अपने सुदृढ़ और आधुनिक रूप में खड़ा करने में परसाई के योगदान को आलोचकों ने एक सिरे से स्वीकार किया है। कठोर से कठोर सत्य को वे बड़ी ही सहजता से स्वीकार कर जीवन जीने की सही राह दिखाते हैं। यही उनके लेखन की विशेषता है। उन्होंने जीवन के दिखावे का तिरस्कार कर सच्चाई से सभी को अवगत कराया है। हम सभी को हरिशंकर परसाई जी के इस विशेषता का अनुकरण कर उनसे प्रेरणा ग्रहण करनी चाहिए। उनका व्यक्तित्व सभी के लिए आदर्श है।