kavi duara uchakanshao manobhav ka kis prakar manvikaran kiya hai

मित्र कवि ने इस कविता में प्रकृति का मानवीकरण किया है। वे कहते हैं कि पहाड़ पर उगने वाले बड़े-बड़े पेड़ ऐसे लग रहे हैं मानो पर्वत के मन की उच्चाकांक्षाएँ हों। ये पेड़ एकटक आकाश की ओर देख रहे हैं। ऐसा लग रहा है कि ये कुछ चिंता में मग्न हैं। 

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