Ekal parivaar aur samyukth parivaar me kya antar ha ?

 मित्र!
हमारे एक मित्र ने आपके प्रश्न का उत्तर दिया है। हम भी अपने विचार दे रहे हैं। आप इनकी सहायता से अपना उत्तर पूरा कर सकते हैं।


एकल परिवार में केवल माँ-बाप और बच्चे होते हैं। संयुक्त परिवार में इनके साथ-साथ दादा-दादी या चाचा-चाची अथवा अन्य रिश्तेदार भी होते हैं। एकल परिवार में सबसे बड़ा नुकसान बच्चे के लालन-पालन को लेकर होता है। उनको माँ-बाप के अलावा किन्हीं भी अन्य सदस्यों का स्नेह नहीं मिल पाता। संयुक्त परिवार में अपनी इच्छा से कुछ नहीं किया जा सकता अपितु सबकी सलाह पर काम किया जाता है। संयुक्त परिवार में कई बार अपनी इच्छा को मारना पड़ता है।  

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एकल परिवारों का सबसे बड़ा नुकसान यही हैं कि वे परिवार की अखंडता और एकता पर बहुत गहरा प्रहार करते हैं। माता-पिता बड़े शौक से यह सोचकर अपने बच्चों का पालन पोषण और उनकी अच्छी शिक्षा की व्यवस्था करते हैं कि वृद्धावस्था में उनके बच्चे उन्हें सहारा देंगे। लेकिन होता इसका एकदम उलटा है। बच्चे काबिल बनने के बाद अपने अभिभावकों के बलिदानों और प्रेम की परवाह किए बगैर उनसे अलग अपनी एक नई दुनियां बसा लेते हैं, जिसमें माता-पिता के प्रति भावनाओं और उत्तरदायित्वों के लिए कोई स्थान नहीं होता।  एक-दूसरे से दूर रहने की वजह से पारिवारिक सदस्यों में आपसी मेलजोल की भावना भी कम होने लगती है और धीरे-धीरे वह पूर्ण रूप से अपने ही परिवार से कट जाते हैं। जिसके फलस्वरूप उन्हें अपने ही संबंधियों के सुख-दुख से कोई वास्ता नहीं रहता। पहले जो तीज-त्यौहार में पारिवारिक सदस्यों की उपस्थिति उत्सवों में चार-चांद लगाया करती थी और एक साथ हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता था, आज वही त्यौहार अलग-थलग रहकर मात्र औपचारिकता पूरी करने के लिए ही अनमने ढंग से मनाया जाने लगा है।  आज वहीं उत्सव मात्र एक औपचारिकता बन कर रह गए हैं। जब तक खुशी सबके साथ मिलकर ना मनाई जाए उसका महत्व समझ में नहीं आता, लेकिन अब तो ऐसा हो पाना मुमकिन नहीं है. क्योंकि मनुष्य ने खुशी और गम के सभी रास्ते, जो उसके पारिवारिक सदस्यों तक पहुंचते थे, अब खुद ही बंद कर दिए हैं. जिस कारण अब उसे अकेले ही हर परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है। संयुक्त परिवारों के विघटन और एकल परिवारों के उद्भव का सबसे बड़ा प्रभाव परिवार के बच्चों पर पड़ा है। नाती-पोतों के साथ समय व्यतीत करने का अरमान हर बुज़ुर्ग का होता है, साथ ही बच्चे भी अपने दादा-दादी के साथ समय बिताना पसंद करते हैं। लेकिन एकल परिवारों की बढ़ती संख्या परिवार के बच्चों को बड़ों के दुलार और स्नेह से महरूम रखने का कार्य करती है। खासतौर पर आज जब महिला और पुरुष दोनों ही बाहर कार्य करने जाते हैं और बच्चे घर में अकेले होते हैं, ऐसे में बड़ों के सहारे की आवश्यकता और बढ़ने लगी है
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