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Question 1:

'आखिर यह भारत है क्या? अतीत में यह किस विशेषता का प्रतिनिधित्व करता था? उसने अपनी प्राचीन शक्ति को कैसे खो दिया? क्या उसने इस शक्ति को पूरी तरह खो दिया है? विशाल जनसंख्या का बसेरा होने के अलावा क्या आज उसके पास ऐसा कुछ बचा है जिसे जानदार कहा जा सके?'

ये प्रश्न अध्याय दो के शुरूआती हिस्से से लिए गए है। अब तक अब पूरी पुस्तक पढ़ चुके होंगे। आपके विचार से इन प्रश्नों के क्या उत्तर हो सकते हैं? जो कुछ आपने पढ़ा है उसके आधार पर और अपने अनुभवों के आधार पर बताइए।

Answer:

भारत एक भू-भाग का नाम नहीं है अपितु उस भू-भाग में बसे लोगों, उसकी संस्कृति, उसकी सभ्यता, उसके रीति-रिवाजों, उसके इतिहास का नाम भारत है,30 उसके भौतिक स्वरूप का नाम भारत है। भारत एकमात्र ऐसा देश है जिसने अतीत में अनेकों संस्कृतियों को बनते बिगड़ते देखा। अनेकों संस्कृति आई और यहाँ आकर या तो विलीन हो गई या नष्ट हो गई परन्तु इन सब में अपनी संस्कृति को न सिर्फ़ बचाए रखा अपितु उसे श्रेष्ठ भी सिद्ध किया। इसी संस्कृति का प्रतिनिधित्व भी किया है।

उसने कितने ही आक्रमणकारी देखें कितने ही शासनकाल देखें, गुलामी की बेड़ियाँ देखी। एक वक्त ऐसा भी आया जब उसने अपनी शक्ति को दूसरों के पैरों तले पाया पर उसने फिर उठकर अपने सम्मान को पाया अपनी धरोहर को खोने से बचा लिया।

आज बेशक वह एक बड़ी आबादी वाला देश हो परन्तु उसके पास आज भी उसकी बहुमूल्य विरासत है- उसकी संस्कृति, महापुरुषों के उच्च विचार, विविधता में एकता व धर्मनिरपेक्षता।

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Question 2:

आपके अनुसार भारत यूरोप की तुलना में तकनीकी-विकास की दौड़ में क्यों पिछड़ गया था?

Answer:

इसका मुख्य कारण संकुचित मानसिकता का होना है। इन रूढ़ियों ने भारत की गतिशीलता पर दुष्प्रभाव डाला है। यद्यपि पुराने भारत पर नज़र डालें तो भारत में मानसिकता, सजगता और तकनीकी कौशल का अतुल भंडार था। यहाँ लोगों में रंचनात्मक प्रवृत्ति विद्यमान थी। लोगों ने प्रकृति और ब्रह्मांड के रहस्यों को खोजने का प्रयास किया था जिसके उदाहरण हमारे इतिहास में भरे पड़े हैं परन्तु इन सबको भूलकर हमने अनुसरण प्रवृति अपना ली। इसका दुष्प्रभाव ही था कि हमने अपनी रचनात्मक प्रवृत्ति को खो दिया। जहाँ हमने ब्रह्मांड के रहस्य खोजे थे वहीं हम व्यर्थ के आडम्बरों में भ्रमित होकर अपने ज्ञान को धूमिल कर चुके थे। जहाँ राजाओं ने साहसिक कार्यों की लालसा और छलकती हुई जिंदगी के लिए सुदूर देशों तक भारतीय संस्कृति का प्रसार किया था वही हमारी संकीर्ण मानसिकता ने उस प्रसार पर रोक लगा दी थी (कहा जाता था कि महासागरों की यात्रा करने पर नर्क की प्राप्ति होती है)। इन सब संकुचित विचार धाराओं ने भारत के विकास पथ को रोक दिया। भारत में व्याप्त निरक्षरता व समाज में बढ़ते जाति-पाति ने भारत की गतिशीलता को छिन्न-भिन्न कर दिया। हमारी सोच के दायरों को अब धीरे-धीरे जैसे जंग लगने लगा था। हमारी वैज्ञानिक चेतना इन आडम्बरों, रूढ़ियों व संकीर्ण मानसिकता के नीचे दब कर रह गई। इसके विपरीत यूरोप भारत से जो कभी पिछड़ा हुआ था, अपनी वैज्ञानिक चेतना तथा बुलंद जीवन शक्ति और विकसित मानसिकता के कारण तकनीकी विकास में भारत से आगे निकल गया।

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Question 3:

नेहरू जी ने कहा कि - "मेरे ख्याल से हम सब के मन में अपनी मातृभूमि की अलग-अलग तसवीरें हैं और कोई दो आदमी बिलकुल एक जैसा नहीं सोच सकते" अब आप बताइए कि-

(क) आपके मन में अपनी मातृभूमि की कैसी तसवीर है?

(ख) अपने साथियों से चर्चा करके पता करो कि उनकी मातृभूमि की तसवीर कैसी है और आपकी और उनकी तसवीर (मातृभूमि की छवि) में क्या समानताएँ और भिन्नताएँ हैं।

Answer:

(क) मातृभूमि से तात्पर्य जहाँ एक ओर इसका भौगोलिक स्वरूप आता है वहीं दूसरी ओर इसका सामाजिक रूप भी होता है। मेरी दृष्टि से मेरी मातृभूमि सबसे अलग और सबसे गौरवशाली है। अलग से तात्पर्य 'मेरा' है। जब हम इसकी भौगोलिक स्थिति को देखें तो ये जहाँ उत्तर में पर्वत राज हिमालय को लेकर खड़ी है तो दूसरी ओर दक्षिण में अथाह समुद्र के रूप में है, पश्चिम में रेगिस्तान के रूप में विराजमान है तो पूर्व में बंगाल की खाड़ी और ऋतु परिवर्तन। ये सब इसके ही रूप हैं, जो हर जगह रमणीय और रोमांचकारी है। परन्तु सिर्फ़ भौगलिक स्वरूप से ही तो मेरी मातृभूमि की छवि पूर्ण नहीं होती क्योंकि ये सिर्फ़ इसलिए 'मेरे' या 'हम सब' के मन में मातृभूमि का दर्ज़ा लिया हुए नहीं है अपितु मेरी मातृभूमि ने अनेकों सभ्यताओं और संस्कृतियों को जन्म दिया। इसी मातृभूमि ने जहाँ राजा राम और श्री कृष्ण रूप में महापुरुषों को जन्म दिया है तो ये उन महापुरूषों की भी जननी रही है जिन्होंने भारत का नाम इतिहास में अमिट अक्षरों में लिख दिया है। इसने एक संस्कृति का पोषण नहीं किया अपितु अनेकों संस्कृतियों को अपनी मातृत्व की छाया में पाल-पोस कर महान संस्कृतिय के रूप में उभारा है। इसने जहाँ गुलामी को सहा, तो वहीं स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय रूप से भाग लिया है। इन सभी कारणों ने इसे मातृभूमि का गौरव दिया है। मेरी मातृभूमि एक गौरवशाली मातृभूमि है।

(ख) अपने मित्रों व साथियों के साथ चर्चा के आधार पर उत्तर लिखो। हमारे साथी भी हमारे तरह सोचते हैं।

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Question 4:

जवाहरलाल नेहरू ने कहा, "यह बात दिलचस्प है कि भारत अपनी कहानी की इस भोर-बेला में ही हमें एक नन्हें बच्चे की तरह नहीं, बल्कि अनेक रूपों में विकसित सयाने रूप में दिखाई पड़ता है।" उन्होंने भारत के विषय में ऐसा क्यों और किस संदर्भ में कहा है?

Answer:

नेहरू जी ने यह कथन सिंधु घाटी की सभ्यता के बारे में कहा है क्योंकि सिंधु घाटी जितनी विकसित सभ्यता का उल्लेख कम ही देखने को मिलता है। उनके अनुसार ये विकसित सभ्यता थी। उस विकास को पाने के लिए इस सभ्यता ने हज़ारों वर्षों का साथ लिया होगा। इस सभ्यता ने फ़ारस मेसोपोटामिया और मिश्र की सभ्यता से व्यापारिक सम्बन्ध कायम किए थे। इस सभ्यता में नागर सभ्यता बड़ी उत्तम थी। नेहरू जी के अनुसार आधुनिक भारत को छ: सात हज़ार साल पुरानी इस सभ्यता से जोड़ता है। इसलिए नेहरू जी ने इसे भारतीय सभ्यता की भोर-वेला कहा है जो एक छोटे बच्चे की तरह नहीं बल्कि आरम्भ से ही विकसित सयाने रूप में विद्यमान थी। इस सभ्यता ने सुंदर वस्तुओं का निर्माण ही नहीं किया बल्कि आधुनिक सभ्यता के लिए उपयोगी ज़्यादा ठेठ चिह्नों-अच्छे हमामों और नालियों के तंत्र का भी निर्माण किया था। जिसने आगे चलकर भवन निर्माण व जल निकासन प्रणाली का मार्ग प्रशस्त किया। ये भारत के लिए सिंधु सभ्यता व मोहनजोदड़ो के कारण ही संभव हो सका है।



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Question 5:

सिंधु घाटी सभ्यता के अंत के बारे में अनेक विद्वानों के कई मत हैं। आपके अनुसार इस सभ्यता का अंत कैसे हुआ होगा, तर्क सहित लिखिए।

Answer:

सिंधु घाटी सभ्यता के अंत के विषय में विद्वानों के भिन्न-भिन्न मत रहे हैं-

(1) कुछ विद्वान मानते हैं कि अकस्मात किसी दुर्घटना के कारण इस सभ्यता का अंत हो गया, पर इसका प्रमाण किसी के पास नहीं है।

(2) कुछ मत के अनुसार, सिंधु सभ्यता सिंधु नदी के किनारे बसी थी। यह नदी भंयकर बाढ़ों के लिए प्रसिद्ध है। इन्हीं बाढ़ों के कारण इस घाटी का अंत हो गया होगा।

(3) कुछ मत के अनुसार तो मौसम परिवर्तन से ज़मीन सूख गई हो और उपजाऊ भूमि रेगिस्तान में बदल गई हो। इस मत के तो कुछ सबूत भी मिलते हैं। जैसे- खुदाई के दौरान मोहनजोदड़ो सभ्यता के खंडहर बालू की सतह के नीचे मिले हैं। विद्वानों के अनुसार बालू के कारण ज़मीन की सतह ऊँची उठती गई और नगरवासियों को मजबूर होकर पुरानी नींवों पर ऊँचाई पर मकान बनाने पड़े।

मेरे अनुसार बदलते मौसम के कारण उपजाऊ भूमि का रेगिस्तान में बदल जाना इस सभ्यता के अंत की शुरूआत रहा होगा क्योंकि एक सभ्यता एक ही स्थान पर इतने लंबे समय तक प्रगति की ओर अग्रसर होती रही हो, वो यूंही तो नहीं उजड़ सकती। यदि कोई बड़ी दुर्घटना घटी होती तो प्रमाण हमें अवश्य मिलते। दूसरा नदी में बाढ़ के कारण तो ये भी थोड़ा भ्रम सा उत्पन्न करता है परन्तु यदि यह सत्य है तो इसका कोई कारण नहीं दिखता आज भी भारत के कई हिस्सों में बाढ़ आती है और हर दूसरे वर्ष आती है। इससे बर्बादी अवश्य होती है पर एक सभ्यता का नाश हो जाए इस मत का समर्थन करने का मन नहीं करता। इसलिए विद्वानों द्वारा तीसरे मत से ही सहमति लगती है कि इस सभ्यता का अंत मौसम के परिवर्तन के कारण रहा होगा क्योंकि मौसम ने उनकी कृषि सम्बन्धी व भरण-पोषण सम्बन्धी समस्याओं को उत्पन्न कर वहाँ की भूमि को रेगिस्तान में तबदील कर उस सभ्यता को दम तोड़ने पर मजबूर कर दिया।

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Question 6:

उपनिषदों में बार-बार कहा गया है कि - "शरीर स्वस्थ हो, मन स्वच्छ हो और तन-मन दोनों अनुशासन में रहें।" आप अपने दैनिक क्रिया-कलापों में इसे कितना लागू कर पाते हैं? लिखिए।

Answer:

इसका तात्पर्य यह है कि यदि मन स्वच्छ हो और तन स्वच्छ हो तो मनुष्य प्रगतिपथ पर स्वयं को अग्रसर कर सकता है। इसके लिए उसे तन और मन की स्वच्छता के साथ-साथ उनको अनुशासन में रखना आवश्यक होता है और ये हम तभी कर सकते हैं जब अपने मन को स्वच्छ बनाने के लिए उच्च विचारों का मनन करें, चिंताओं और परेशानियों को ज़्यादा अहमियत ना देकर अपने को प्रसन्नचित रखें। शरीर को (तन) स्वच्छ रखने के लिए प्रात: काल उठकर नित्य व्यायाम करें, लंबी सैर पर जाएँ और ये सब बड़े अनुशासन पूर्वक करें। यदि हम दैनिक दिनचर्या में इस प्रणाली को क्रियान्वित करते हैं तो हम एक उच्च व आदर्श जीवन को पा सकते हैं। एक स्वस्थ मन स्वस्थ विचारों को जन्म देता है जो हमारे जीवन पर अच्छा प्रभाव डालते हैं हमारी सोच को सकारात्मक दिशा देते हैं और जीवन की धारा ही बदल देते हैं। स्वस्थ शरीर (तन) उस सकारात्मक दिशा के साथ तालमेल बिठाता है और हम निरोग जीवन व्यतीत करते हैं। आज के समय में मनुष्य के पास जिसकी कमी है वह है समय, इस समय के अभाव ने उसकी दिनचर्या को मशीनी-मानव की तरह बना दिया है। यहाँ कार्य ज़्यादा महत्वपूर्ण हो गया। उसके पास स्वयं के लिए समय नहीं है इसलिए हम अपने मन व तन की स्वच्छता से अनभिज्ञ हैं और इसी कारणवश अनेकों मानसिक व शारीरिक बीमारियों से ग्रस्त हैं। हमें चाहिए कि हम अनुशासन को अपने जीवन में स्थान दें प्रात: काल उठें, व्यायाम करें, सैर पर जाएँ। उच्च विचारों का मनन करें, अच्छी पुस्तकें पढ़ें तो हम स्वयं विभिन्न बीमारियों से बच सकते हैं।

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Question 7:

नेहरू जी ने कहा है कि - "इतिहास की उपेक्षा के परिणाम अच्छे नहीं हुए।" आपके अनुसार इतिहास लेखन में क्या-क्या शामिल किया जाना चाहिए है? एक सूची बनाइए और उस पर कक्षा में अपने साथियों और अध्यापकों से चर्चा कीजिए।

Answer:

जिस तरह से यूनानियों, चीनियों व अरबवासियों के इतिहासकारों ने अपने इतिहास का सही ब्यौरा दिया है उस प्रकार से भारतीय इतिहासकार नहीं कर पाए जिसके कारण हमारे इतिहास में भ्रम की स्थिति उत्पन्न हो गई है। इसी कारण आज तिथियाँ निश्चित करना या सही काल क्रम निर्धारित करना कठिन हो गया है। परिणामस्वरूप घटनाएँ अपने आपस में गड्ड-मड्ड हो गई हैं इसलिए हमें चाहिए कि इतिहास लेखन में निम्नलिखित बातों का उल्लेख करें -

(1) इतिहास लेखन में प्रमुख घटनाओं का सही-सही विवरण दें

(2) उस समय की तिथियों व घटना का समुचित विवरण सावधानी पूर्वक व सही-सही दें।

(3) उस समय से सम्बन्धित महापुरूषों व व्यक्तियों की जीवनी का समुचित विवरण दें।

(4) उस समय में हुए युद्धों व शान्तिवार्ता (संधिवार्ता) का विवरण दें।

(5) उस समय में रचित रचनाओं व उनके रचनाकारों का समुचित विवरण दें।

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Question 8:

"हमें आरंभ में ही एक ऐसी सभ्यता और संस्कृति की शुरूआत दिखाई पड़ती है जो तमाम परिवर्तनों के बावजूद आज भी बनी है।"

आज की भारतीय संस्कृति की ऐसी कौन-कौन सी बातें/चीज़ें हैं जो हज़ारों साल पहले से चली आ रही हैं? आपस में चर्चा करके पता लगाइए।

Answer:

भारतीय संस्कृति, ये स्वयं में अद्भूत गुणों को समेटे हुए है। भारतीय संस्कृति का स्थायी रूप से टिके रहने का कारण इसका ठेठ भारतीयपन है और यही आधुनिक सभ्यता का आधार है। इसी कारण ये संस्कृति पाँच-छ: हज़ार वर्ष या उससे भी अधिक समय तक निंरतर बनी रही है वह भी बराबर परिवर्तनशील और विकासमान रहकर। उस समय के देशों से जैसे- फ़ारस, मिस्र, ग्रीस, चीन, अरब, मध्य एशिया और भूमध्य सागर के लोगों से उसका बराबर संपर्क रहा इन्होंने भारत को प्रभावित किया और स्वयं भी इससे प्रभावित हुए। परन्तु इसका सांस्कृतिक आधार इतना मजबूत था कि कितनी ही अन्य सभ्यता व संस्कृति आई, इसने उन्हें भी अपने में आत्मसात कर लिया। इसके इसी लचीलेपन ने इसे हज़ारों सालों तक बनाए रखा। अन्य संस्कृतियाँ व सभ्यताएँ वक्त के थपेड़ों के साथ जैसे उत्पन्न हुई थी उसी तरह पतन के गर्त में समा गई परन्तु भारतीय सभ्यता जस के तस बनी हुई है। भारतीय संस्कृति में कई ऐसी बातें हैं जो उसी तरह बनी हुई है जैसे प्राचीन कालीन युग से आधुनिक युग तक। जैसे- गंगा के तटों पर पीढ़ी दर पीढ़ी स्नान के लिए लोग खीचें चले आ रहे हैं। भारतीय संस्कृति में टकराहट को कभी जगह नहीं मिली इसके स्थान पर इसने हमेशा समन्वय व प्रेम को अधिक स्थान दिया है इसी कारण ये आज भी विद्यमान है।  समय के अनुसार इसकी परिवर्तन शीलता ने भी इसको बनाए रखने में विशेष सहयोग दिया है। इसके यही गुण हैं जिसने इसे आज भी स्थापित रखा है।

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Question 9:

आपने पिछले साल (सातवीं कक्षा में) बाल महाभारत कथा पढ़ी। भारत की खोज में भी महाभारत के सार को सूत्रबद्ध करने का प्रयास किया गया है-"दूसरों के साथ ऐसा आचरण नहीं करो जो तुम्हें खुद अपने लिए स्वीकार्य न हो।" आप अपने साथियों से कैसे व्यवहार की अपेक्षा करते हैं और स्वयं उनके प्रति कैसा व्यवहार करते हैं? चर्चा कीजिए।

Answer:

एक कक्षा या किसी भी कार्यालय में जहाँ अलग-अलग स्वभाव के लोग साथ आकर पढ़ते हैं या काम करते हैं वहाँ समन्वय की भावना का होना अति आवश्यक है। यदि हमारे मन में हमारे सहपाठियों या मित्रों के प्रति द्वेष भावना और ईर्ष्या की भावना होती है, वहाँ रिश्तों में मधुरता नहीं होती ना ही हम किसी के मित्र बन सकते हैं और ना ही एक अच्छा मित्र बन पाते हैं। जिस जगह पूर्ण निस्वार्थ भाव से मधुर आचरण किया जाता है वहाँ मित्रता का बहुत ही सुंदर रूप देखने को मिलता  है।

यदि हम दूसरों के साथ मित्रतापूर्ण आचरण न करें, हमेशा उनके साथ बेरूखा व्यवहार करें, मधुरता का जवाब क्रोधपूर्ण व्यवहार के साथ देंगे तो हमें कभी उसकी जगह मधुरता व प्रेम प्राप्त नहीं हो सकेगा। हम सदैव अकेले व उग्र स्वभाव के हो जाएँगे। सभी हमसे बात करने से कतराएँगे व हमारे प्रति अपने मन में कटुभावना रखेंगे। इसके विपरीत यदि हम सबके साथ मधुरतापूर्ण आचरण रखें, प्रेम भाव से सबका सम्मान करें तो हमें भी उनसे वही मधुरता व वही सम्मान प्राप्त होगा। हम हर मनुष्य को अपना मित्र बना पाएँगे, लोगों के हृदय में आदरभाव की भावना को उत्पन्न कर पाएँगे। इसलिए महाभारत में कहा गया है कि दूसरों के साथ ऐसा आचरण नहीं करो जो तुम्हें खुद अपने लिए स्वीकार्य न हो।

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Question 10:

प्राचीन काल से लेकर आज तक राजा या सरकार द्वारा ज़मीन और उत्पादन पर 'कर' (tax) लगाया जाता रहा है। आजकल हम किन-किन वस्तुओं और सेवाओं पर कर देते हैं, सूची बनाइए।

Answer:

आजकल हम निम्नलिखित वस्तुओं और सेवाओं पर कर देते हैं -

(1) संपत्ति पर कर (संपत्तिकर)

(2) आयकर (आय पर देने वाला कर)

(3) खाद्य पदार्थों व वस्त्रों पर कर

(4) होटलों व रेस्टोरेन्ट पर खानें पर कर

(5) हवाई यात्रा पर कर

(6) टी.वी, फ्रिज़, स्वर्ण आभूषणों की खरीद पर कर

(7) सर्विस टैक्स (अर्थात् किसी काम को करने व करवाने पर कर)

(8) व्यापार कर

(9) मनोरंजन कर

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Question 11:

(क) प्राचीन समय में विदेशों में भारतीय संस्कृति के प्रभाव के दो उदाहरण बताइए।

(ख) वर्तमान समय में विदेशों में भारतीय संस्कृति के कौन-कौन से प्रभाव देखे जा सकते हैं? अपने साथियों के साथ मिलकर एक सूची बनाइए।

(संकेत - खान-पान, पहनावा, फिल्में, हिंदी, कंप्यूटर, टेलीमार्केटिंग आदि।)

Answer:

(क) प्राचीन समय में विदेशों में भारतीय संस्कृति के कई प्रभाव पड़े। भारत में आने वाले विदेशी यात्री भारत की संस्कृति की विशेषताओं को अपने साथ ले गए उनमें मुख्य हैं- भारतीय खानपान की चीज़ें, भारतीय कपड़ों का विदेशों में प्रचलन आदि।

(ख) वर्तमान समय में भी विदेशों में भारतीय संस्कृति के कई प्रभाव देखे जा सकते हैं, जैसे -

(1) विभिन्न पकवान तथा खानपान की चीज़ें

(2) भारत में पहने जाने वाले कपड़ों की माँग

(3) भारतीय भाषा हिंदी तथा अन्य भाषाओं का प्रभाव

(4) कंप्यूटर के क्षेत्र में विदेशी बाज़ार पर प्रभाव डाला है

(5) अन्य पहलू जैसे- धर्म, दर्शन, नीति-शिक्षा आदि का भी महत्वपूर्ण स्थान है



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Question 12:

पृष्ठ संख्या 34 पर कहा गया है कि जातकों में सौदागरों की समुद्री यात्राओं/यातायात के हवाले भरे हुए हैं। विश्व/भारत के मानचित्र में उन स्थानों/रास्तों को खोजिए जिनकी चर्चा इस पृष्ठ पर की गई है।

Answer:

इसको स्वंय करो।

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Question 13:

कौटिल्य के अर्थशास्त्र में अनेक विषयों की चर्चा है, जैसे, "व्यापार और वाणिज्य, कानून और न्यायालय, नगर-व्यवस्था, सामाजिक रीति-रिवाज, विवाह और तलाक, स्त्रियों के अधिकार, कर और लगान, कृषि, खानों और कारखानों को चलाना, दस्तकारी, मंडियाँ, बागवानी, उद्योग-धंधे, सिंचाई और जलमार्ग, जहाज़ और जहाज़रानी, निगमें, जन-गणना, मत्स्य-उद्योग, कसाई खाने, पासपोर्ट और जेल-सब शामिल हैं। इसमें विधवा विवाह को मान्यता दी गई है और विशेष परिस्थितियों में तलाक को भी।" वर्तमान में इन विषयों कि क्या स्थिति है? अपनी पसंद के किन्हीं दो-तीन विषयों पर लिखिए।

Answer:

विवाह और तलाक

विवाह एक ऐसे रिस्ते का नाम है जिसमें दो परिवारों व दो व्यक्तियों का जीवन आपस में जुड़ता है। विवाह के द्वारा दो व्यक्ति अपनी युवावस्था की अल्हड़ता को छोड़कर दांपत्य जीवन में प्रवेश करते हैं और नई ज़िम्मेदारियों को उठाते हैं। विवाह में जहाँ दो व्यक्तियों के जीवन की डोर आपस में जुड़ जाती है उसी तरह दोनों परिवारों का समन्वय उनको नए रिश्तों में भी बाँधता है जिससे उनके कर्त्तव्य और ज़िम्मेदारियाँ दुगुनी हो जाती हैं। विवाह के पश्चात् एक लड़की एक नए घर में प्रवेश करती है, नए परिवेश में स्वयं को ढ़ालती है व उस परिवार के सदस्यों से नए सम्बन्ध स्थापित करती है। यह सब विवाह में संभव है। इसी तरह से एक लड़के को भी दूसरे परिवार के लिए नए सिरे से शुरूआत करनी होती है। पहले, विवाह में औरतों पर बहुत ज़िम्मेदारियों का दबाव बना रहता था क्योंकि ज़्यादातर औरतें अशिक्षित थीं इसलिए वह घर को संभालती थीं। उनके लिए उनका परिवार, उनके बच्चे, उनका भविष्य ही उनका लक्ष्य तथा उद्देश्य हुआ करता था। वह अपना सारा जीवन इसी में समर्पित कर देती थी क्योंकि भारतीय समाज पुरूष प्रधान समाज रहा है। उसकी स्थिति इसकी उलटी थी बाहर जाकर नौकरी करना व हर महीने अपनी आय से घर का खर्चा चलाना उनका कर्त्तव्य बस यहीं तक निहित था। परन्तु समय के साथ औरतों की स्थिति में भी बदलाव आने लगा। जहाँ घर-परिवार को अपना सर्वस्व सौंपकर वह इसमें आलौकिक सुख मानती थी। अब शिक्षित होने के कारण उनके उद्देश्य व सुखों में अंतर आना आरंभ हो गया। अब वो पुरूषों के बराबर चलकर उनकी ज़िम्मेदारियों में बराबर का साथ देने लगी इस कारण उनका उद्देश्य उनका करियर हो गया। अब उनके लिए अपनी माताओं की तरह घर-परिवार महत्वपूर्ण नहीं रहा। वह स्वयं के लिए एक नई मंज़िल चुन चुकी थीं इसी कारण समाज में तलाक की प्रवृति आरंभ होने लगी। जहाँ वह पहले पुरूष द्वारा की गई अवहेलना व प्रताड़ना को चुपचाप सहन कर जाती थीं, अब बुलंद आवाज़ में उसका विरोध करने लगी। समय की व्यस्तता ने भी घर पर समय ना देने के कारण समाज में तलाक की प्रवृति पर ज़ोर दिया है। व्यस्तता के कारण आपसी रिश्तों में खटास घुलने लगी है और शिकायतों के दौर बढ़ने लगे। पहले के दौर में तलाक बहुत ही बुरा माना जाता था और मुश्किल से ही लोग इसके लिए तैयार होते थे। परन्तु आज के प्रगतिशील समय में यह आम बात होती जा रही है। पहले तलाक लेने से पहले दस बार सोचा जाता था परन्तु आज छोटी-छोटी बातों में तलाक के लिए तैयार हो जाना विवाह जैसे रिस्ते के लिए बुरा दौर है। समाज में बढ़ती इस कुरीति ने विवाह के प्रति लोगों में भय उत्पन्न कर दिया है। हमें चाहिए कि हम सजग रहकर समान रूप से अपने रिश्तों का निर्वाह करें व तलाक जैसी कुरीति को समाज की जड़ से उखाड़ फेंके। तभी एक उज्जवल भविष्य और सभ्य समाज की ओर बढ़ा जा सकता है।

विधवा विवाह

प्राचीन काल से हमारे समाज में विधवा विवाह को उचित नहीं माना गया है। उस समय के अनुसार एक स्त्री के पति की मृत्यु हो जाने के पश्चात् सादा जीवन व्यतीत करना, उस स्त्री के लिए सही माना जाता था। उसके पति की मृत्यु के पश्यात् या तो उसे सती होना पड़ता था या फिर उसे समाज का परित्याग करना पड़ता था। उनको हरिद्वार या वाराणसी आश्रमों में साध्वी का जीवन व्यतीत करने के लिए छोड़ दिया जाता था। उनको कैसा जीवन जीना चाहिए इसके लिए नियमों की पूरी सूची उन्हें थमा दी जाती थी। उस समय के समाज में विधवाएँ अधिक संख्याओं में होती थीं। इसका मुख्य कारण था- बालावस्था में उनका विवाह जिसके कारण अकस्मात् दुर्घटना या बीमारी से उनके पति की मृत्यु उन्हें बचपन में ही विधवा बना देती थी। बालपन से ही विधवा जीवन जीने के लिए उन्हें झोंक दिया जाता था। समाज में उनकी स्थिति दयनीय बनी हुई थी। उनके उत्थान के लिए कई महापुरूषों ने आगे बढ़कर कार्य किए हैं। यहाँ तक चाणक्य द्वारा रचित "चाणक्य शास्त्र" में भी विधवा विवाह की बात कही गई है। परन्तु राजाराम मोहन राय ने विधवा विवाह के विरुद्ध महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। उन्होंने सती प्रथा को रोका और विधवा विवाह पर ज़ोर दिया। इसमें उनका अंग्रेज़ों ने भी साथ दिया और सती प्रथा के उन्मूलन और पुन: विधवा विवाह को मान्यता दी। राजाराम मोहन राय के अथक प्रयास के कारण ही आज समाज में विधवा विवाह को मान्यता प्राप्त है, इसे बुरी नज़रों से नहीं देखा जाता। आज समाज में पहले की तुलना में विधवाएँ कम ही देखी जाती है। इसका मुख्य कारण समाज का शिक्षित होना है। अब समाज में बाल विवाह देखने को बहुत कम ही मिलते हैं। यह प्रथा किसी गाँव में ही देखने को मिलती है, सरकार द्वारा लड़की व लड़के की उम्र 18 से 19 वर्ष तक रखी गई है। इससे कम उम्र के विवाह को करने पर परिवार वालों को सरकार द्वारा दंडित किया जाता है। समाज का शिक्षित होना जैसे लड़कियों के लिए वरदान सिद्ध हुआ है। अब उनकी स्थिति मज़बूत हुई है, अब वे शिक्षित हैं और उन्हें अपनी स्वेच्छा से विवाह करने का अधिकार प्राप्त है। इन सबके कारण समाज में विधवाओं का स्तर कम हुआ है। यह सही कहा जाता है कि प्रगतिशील समाज सदैव सबके लिए कल्याणकारी होता है। हमें चाहिए हम अपने विचारों को इस प्रगति की गति के साथ मिलाएँ ताकि समाज की स्थिति मज़बूत बन जाए। उन महापुरूषों का भी धन्यवाद करना चाहिए जिनके भरसक प्रयास ने स्त्रियों की दशा सुधारने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

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Question 14:

आज़ादी से पहले किसानों की समस्याएँ निम्नलिखित थीं-"गरीबी, कर्ज़, निहित स्वार्थ, ज़मींदार, महाजन, भारी लगान और कर, पुलिस के अत्याचार..." आपके विचार से आजकल किसानों की समस्याएँ कौन-कौन सी हैं?

Answer:

आज़ादी से पहले जो समस्याएँ निहित थीं उनमें से कई समस्याओं का उन्मूलन हो गया है। पर परिस्थितियाँ आज भी नहीं बदली है। आज के किसानों को उसी प्रकार विभिन्न समस्याओं का सामना करना पड़ता है। वो समस्याएँ इस प्रकार हैं -

(1) कल की तुलना में किसान आज भी गरीब हैं, खेती करने के लिए आवश्यक चीजें कर पाना उसके बस में नहीं हैं। पहले हल से खेतों को जोता जाता था, परन्तु आज बोने, कटाई व सफ़ाई के लिए अत्य आधुनिक मशीनें आ गई हैं जिसके अभाव में पैदावार पर बुरा असर पड़ रहा है और उसकी स्थिति जस की तस है।

(2) पहले की तुलना में जलवायु परिवर्तन से उसकी पैदावार को गहरा नुकसान हुआ है। सही समय पर वर्षा ना हो पाना जिसके कारण सूखा पड़ जाना या फिर अत्याधिक वर्षा के कारण खड़ी फसल खराब हो जाना जैसे कारणों से किसानों के लिए विकट समस्याएँ उत्पन्न होने लगी हैं।

(3) सिंचाई के साधनों के अभाव के कारण किसानों की फसल के लिए पर्याप्त मात्रा में जल का प्रबन्ध न होने के कारण पैदावार को हानि पहुँचती है। मौसम पर निर्भर रहकर वह अपनी पैदावार नहीं बढ़ा सकता है।

(4) अपनी पैदावार को बढ़ाने के लिए उसे उन्नत बीज नहीं मिल पा रहे हैं।

(5) हर साल अपनी पैदावार को बढ़ाने के लिए किसानों को रूपयों की ज़रूरत पड़ती है। वह इसके लिए दिन-प्रतिदिन कर्ज़ लेता रहता है और धीरे-धीरे कर्ज़ का दबाव इतना बढ़ जाता है कि मजबूरन उन्हें कोई गलत फैसला भी लेना पड़ जाता है। कई बार तो यह भी देखा गया है कि किसान आत्महत्या भी कर लेते हैं। कर्ज़ का बोझ बढ़ते जाना और पैदावार का न के बराबर होना ये सबसे बड़ी समस्या के रूप में उभर कर सामने आया है।

(6) सरकार द्वारा किसानों की स्थिति को उभारने के कई प्रयास हुए हैं। परन्तु वे सब प्रयास निरर्थक ही साबित हुए। हर बार जब नई सरकार बनती है वह किसानों से कई वादे करती है परन्तु सरकार बनने के पश्चात् उनके लिए कुछ नहीं करती जिससे उनके वादे मात्र थोथे वादे बनकर रह जाते हैं, किसानों की स्थिति और दयनीय हो जाती है।

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Question 15:

"सार्वजनिक काम राजा की मर्ज़ी के मोहताज़ नहीं होते, उसे खुद हमेशा इनके लिए तैयार रहना चाहिए।" ऐसे कौन-कौन से सार्वजनिक कार्य हैं जिन्हें आप बिना किसी हिचकिचाहट के करने को तैयार हो जाते हैं?

Answer:

ऐसे कई काम हैं जो हम बिना सरकार के कर सकते हैं वो इस प्रकार हैं -

(1) किसी की मदद करने के लिए हमें सरकार की आवश्यकता की ज़रूरत नहीं होती फिर चाहे वह मनुष्य की हो या जानवर की इसे हम स्वयं कर सकते हैं।

(2) समाज में गरीब-बच्चों को पढ़ाने के लिए हमें सरकार का मुँह ताँकने की आवश्यकता नहीं है। हम चाहे तो थोड़ा सा समय निकालकर उनको पढ़ाई के लिए प्रेरित कर उनमें शिक्षा का प्रसार कर सकते हैं।

(3) सरकार के रवैये के प्रति सजगता- यदि हमें लगे कि हमने जो सरकार चुनी हैं वह सही तौर पर जनता के विकास के कार्यों को नहीं कर रही है तो हम इसके विरूद्ध आवाज़ उठा सकते हैं और एक नई सरकार बना सकते हैं चाणक्य ने भी लिखा है कि यदि कोई राजा अनीति करता है तो उसकी प्रजा को यह अधिकार है कि उसे हराकर किसी दूसरे को उसकी जगह बैठा दें। यह हमारा अधिकार व कर्तव्य है।

(4) महिलाओं की दशा सुधारने का कार्य- ये ऐसा कार्य है जिसे समाज का हर व्यक्ति कर सकता है। यदि राजा राम मोहन राय जैसे लोग सती प्रथा व पुन: विधवा विवाह के लिए कदम नहीं उठाते तो आज समाज में स्त्रियों की दशा नहीं सुधरती। हमें चाहिए स्त्रियों की शिक्षा व अधिकार सम्बन्धी कार्यों के लिए हम स्वयं कुछ करें।

(5) अपने देश, राज्य या मोहल्ले को स्वच्छ व सुंदर बनाए रखने के लिए हम साथ कार्य कर सकते हैं। जगह-जगह वृक्षों का रोपण कर सकते हैं, गली-मोहल्ले की सफ़ाई की व्यवस्था के लिए स्वयं कार्यरत हो सकते हैं। हमारे सहयोग से ही देश को स्वच्छ व सुंदर बनाया जा सकता है। इसमें सरकार के द्वारा कदम उठाने का इंतज़ार करना हमारा, हमारे देश के लिए कर्त्तव्यों की तरफ़ से आँख मूँदना होगा।

(6) किसी अकस्मात् दुर्घटना पर मिलजुलकर हाथ बँटाना हमारा कर्त्तव्य है, ये कर्त्तव्य बिना किसी परेशानी के किया जा सकता है, जैसे- दुर्घटना स्थल पर घायलों की मदद करना, उनके लिए उपचार सम्बन्धी साधनों को जुटाना आदि। इसका सबसे बड़ा उदाहरण भुज में हुए भूकंप के समय देखा गया था जब हम सबने मिलकर भुज के लिए अन्न, कपड़ें, दवाईयों हेतु कार्य किए। इसके लिए सरकार का मुँह देखने की हमें आवश्यकता नहीं पड़ी।

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Question 16:

महान सम्राट अशोक ने घोषणा की कि वह प्रजा के कार्य और हित के लिए 'हर स्थान पर और हर समय' हमेशा उपलब्ध हैं। हमारे समय के शासक/लोक-सेवक इस कसौटी पर कितना खरा उतरते हैं? तर्क सहित लिखिए।

Answer:

हमारे समय के शासक या लोकनेता पहले की तुलना में बिल्कुल नाकारा साबित हुए हैं। पहले के शासक प्रजा के हितों के लिए स्वयं के हित को नहीं मानते थे, उनके लिए जनता सर्वोपरि थी परन्तु आज का नेता इसके बिल्कुल विपरीत है। सत्ता में आना उसके लिए जैसे अपना स्वार्थहित है। वो कभी जनता की समस्याओं के लिए उपलब्ध नहीं होते। अपितु, उन्हें किसी उद्घाटन समारोह या चुनाव प्रचार के समय वोट माँगते देखा जा सकता है। वो जनता से तारीफें तो बटोरना चाहते हैं परन्तु उनकी समस्याओं को सुलझाने व सुनने के लिए उनके पास समय नहीं है। समाज में व्याप्त दो चार समस्योओं का बल निकालकर वह अपने कर्तव्यों को पूरा मान लेते हैं और जो महत्वपूर्ण जटिल समस्याएँ होती हैं, उसे ज्यों का त्यों छोड़ देते हैं। उनको चुनावी घोषणा-पत्र में तो गरीबी उन्मूलन, महिलाओं को आरक्षण, शिक्षा के बेहतर सुविधाए, बेरोजगारी उन्मूलन आदि समस्याओं को दर्शाया जाता है। परन्तु सरकार बनने पर यह सारी समस्याओं पर ध्यान न देना उनका स्वभाव बन गया है। सत्ता पाते ही देश को दीमक की तरह अंदर ही अंदर चाट डालते हैं और जनता के लिए केवल टूटी अर्थव्यवस्था छोड़ जाते हैं। आज के नेता जनता के लिए आदर्श के स्थान पर एक घृणा का पात्र बनकर रह गया है। वो समाज में एक आदर्श के रूप में स्वयं को स्थापित नहीं कर पा रहें। इसका परिणाम है कि लोग राजनीति व राजनेताओं से बचकर रहना चाहते हैं।

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Question 17:

'औरतों के परदे में अलग-थलग रहने से सामाजिक जीवन के विकास में रूकावट आई।' कैसे?

Answer:

परदा प्रथा ने औरतों के विकास को पूर्णत: समाप्त ही कर दिया था। माना जाता है इस प्रथा का विकास मुगल-काल से आरंभ हुआ था। आरंभ में तो इसे सिर्फ़ आदर भाव के रूप में लिया गया था जो सिर्फ़ बड़े राजघरानों व मुगलघरानों तक सीमित था। परन्तु धीरे-धीरे इस प्रथा ने पूरे समाज में अपनी जड़ पकड़ ली। परिणामस्वरूप औरतों की स्थिति समाज में दयनीय हो गई। इससे उनके सामाजिक जीवन के विकास में रूकावटें आनी आरंभ हो गई।

औरतें जहाँ पहले सामाजिक कार्यों में सहजता पूर्वक भाग ले पाती थीं अब वह इस प्रथा पर दबकर रह गईं। उनका पुरूषों के आगे बिना पर्दे के आना बुरा माना जाने लगा जिसने उनकी स्वतंत्रता पर अंकुश लगा दिया और उसे समाज से काट कर अलग कर दिया गया। उनकी शिक्षा पर भी इसका बुरा प्रभाव पड़ा। अब उन्हें पर्दे में ही रहने की हिदायतें लागू हो गई, कारणवश वह शिक्षा प्राप्त करने के लिए बाहर जाने से रोक दी गई। इसके फलस्वरूप वह अशिक्षित रह गईं। समाज में सिर्फ़ पुरूषों को ही शिक्षा प्राप्त करने की आज़ादी प्राप्त थी। इससे उनके मानसिक विकास का भी ह्रास हुआ। अब उनकी प्रतिभा व्यंजनों को पकाने व घर के साजों-समान को बनाने तक सीमित रह गई। उनकी प्रतिभा का सही विकास नहीं हो पाया। फलस्वरूप उनके सामाजिक जीवन के विकास में पर्दा प्रथा सबसे बड़ी रूकावट बनी।

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Question 18:

मध्यकाल के इन संत रचनाकारों की अनेक रचनाएँ अब तक आप पढ़ चुके होंगे। इन रचनाकारों की एक-एक रचना अपनी पसंद से लिखिए-

() अमीर खुसरो

() कबीर

() गुरू नानक

() रहीम

Answer:

(क) अमीर खुसरो - दीवान (काव्य संग्रह), अमीर खुसरो की पहेलियाँ

(ख) कबीर - बीजक

(ग) गुरू नानक - गुरू ग्रंथ साहिब

(घ) रहीम - रहीम के दोहे



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Question 19:

बात को कहने के तीन प्रमुख तरीके अब तक आप जान चुके होंगे-

() अभिधा () लक्षणा () व्यंजना

बताइए, नेहरू जी का निम्नलिखित वाक्य इन तीनों में से किसका उदाहरण है? यह भी बताइए कि आपको ऐसा क्यों लगता है?

"यदि ब्रिटेन ने भारत में यह बहुत भारी बोझ नहीं उठाया होता (जैसा कि उन्होंने हमें बताया है) और लंबे समय तक हमें स्वराज्य करने की वह कठिन कला नहीं सिखाई होती, जिससे हम इतने अनजान थे, तो भारत न केवल अधिक स्वतंत्र और अधिक समृद्ध होता.... बल्कि उसने कहीं अधिक प्रगति की होती।"

Answer:

नेहरू जी का यह वाक्य व्यंजना शैली का उदाहरण है। यहाँ पर नेहरू जी ने सीधे प्रहार न कर प्रतीक के रूप पर अंग्रेज़ी सरकार व भारतीय जनता पर प्रहार किया है। जिसके फलस्वरूप वह आरोप को सीधे न लगाकर घुमाकर अपनी बात को कह रहे हैं। जब व्यंजना शैली में लिखते हैं तो कोशिश करते हैं हम विवादों में ना फँसे और अपनी बात भी भली प्रकार से कह जाएँ। यही इस शैली का गुण है। यहाँ नेहरु जी भारत का विकास न कर पाने का वर्णन भी करते हैं। व्यंजना में लिखते हुए हम उस बात के लिए प्रतीक गढ़ते हैं, जैसे- पशु, टयूब लाईट, या कोई अन्य वस्तु आदि और लिखते इस प्रकार हैं कि मानो पढ़ने वालो को  उस बात की ओर इशारा किया जा रहा है। इसके विपरीत शाब्दिक विधा में व्यक्तियों के बारे में सीधा लिख दिया जाता है। लक्षणित जैसा नाम है व्यक्ति के लक्षणों के बारे में बताने वाले पात्र गढ़ लेते हैं।

मुख्यत: व्यंजना को समझाना थोड़ा मुश्किल होता है पर यदि समझ लिया जाए तो इसे पढ़ने वाले को बहुत ही आनंद आता है।

हिंदी में व्यंजना को ही दोनों विधा से श्रेष्ठ माना जाता है। नेहरू जी ने इसी विधा का प्रयोग किया है।

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Question 20:

"नयी ताकतों ने सिर उठाया और वे हमें ग्रामीण जनता की ओर ले गईं। पहली बार एक नया और दूसरे ढंग का भारत उन युवा बुद्धिजीवियों के सामने आया..."

आपके विचार से आज़ादी की लड़ाई के बारे में कही गई ये बातें किस 'नयी ताकत' की ओर इशारा कर रही हैं? वह कौन व्यक्ति था और उसने ऐसा क्या किया जिसने ग्रामीण जनता को भी आज़ादी की लड़ाई का सिपाही बना दिया?

Answer:

आज़ादी की लड़ाई में कही गई ये बातें ताकत के रूप में उभरते नए बुद्धिजीवी वर्ग के लिए थीं। ये वर्ग शिक्षित था, इसमें नए और सक्रिय विचारों को समझने की शक्ति थी और इन्हीं वर्ग के कारण आधुनिक चेतना का प्रसार हुआ। इन्होंने आज़ादी के मूल्यों को पहचाना और आम जनता को उसके अधिकारों के प्रति जागृत किया। इस ताकत के सबसे बड़े महानायक थे- महात्मा गाँधी। वे महानायक भारत की उस हीन दशा में ताज़ा हवा के ऐसे झोंके की तरह आए जिसने हमें फैलकर गहरी साँस लेने योग्य बनाया। वे अवतरित नहीं हुए अपितु भारत की करोड़ों की आबादी के बीच से निकलकर आए थे। उन्होंने अंग्रेज़ों के व्यापक दमन, दमघोंटू शासन, जमींदारों व साहूकार के अत्याचारों से, बेकारी और भुखमरी के भय से हमें बाहर निकाला और इन सब के विरूद्ध खड़ा होने के लिए प्रेरित किया। उन्होंने गरीबी और भूख से लिपटी ग्रामीण जनता को चेताया, अपने साथियों को दूर-दूर गाँवो में भेजा, अपने ओजपूर्ण भाषणों से उनके अंदर दबी हुई ज्वाला को जगाया और इस तरह उन्होंने देश के हर हिस्से में स्वतंत्रता के लिए एक नई सेना खड़ी की जो इतनी शक्तिशाली सेना के रूप में उनके नेतृत्व के रूप में खड़ी हुई कि अंग्रेज़ों को भारत छोड़ना ही पड़ा। यह वह महात्मा गाँधी थे जिन्होंने अपने अथक प्रयास से भारत के एक-एक नागरिक को स्वतंत्रता का सिपाही बना दिया।

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Question 21:

'भारत माता की जय' − आपके विचार से इस नारे में किसकी जय की बात कही जाती है? अपने उत्तर का कारण भी बताइए।

Answer:

जब भी हम इस नारे का जय घोष करते हैं तो हम सदैव भारत भूमि की जय की बात करते हैं क्योंकि इस भूमि में भारत की भौगोलिक स्थिति- उसकी धरती, नदी, पहाड़, समुद्र, मैदान की ही नहीं अपितु भारत के लोगों व संस्कृति को भी अभिन्न अंग के रूप में जोड़ा गया है और तब उन सब से मिलकर बने 'भारत' को माँ के रूप में जय घोष करते हैं। इस कथन को नेहरू जी ने अपना समर्थन दिया है। उनके अनुसार भारत की मिट्टी, एक गाँव, एक जिले और एक राज्य की नहीं अपितु तमाम टुकड़ों या फिर पूरे भारत की मिट्टी से है। इसके अलावा भारत के पहाड़, नदियाँ, जंगल फैले हुए खेत जो हमारा भरण-पोषण करते हैं, वे भी सम्मिलित हैं। पर इन सब चीज़ों से अधिक महत्वपूर्ण भारत की जनता है जो इस विशाल भूखंड के चारों ओर फैले हुए हैं और यही इस भारत माता का मूल रूप है इसलिए हमें इन सबकी जय बोलनी चाहिए।

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Question 22:

() भारत पर प्राचीन काल से ही अनेक विदेशी आक्रमण होता रहे। उनकी सूची बनाइए। समय क्रम में बनाएँ तो और भी अच्छा रहेगा।

() आपके विचार से भारत में अंग्रेज़ी राज्य की स्थापना इससे पहले के आक्रमणों से किस तरह अलग है?

Answer:

(क)

(i)

1000 ई.

महमूद गजनवी

(ii)

1191 ई.

शहबुद्दीन गौरी (मोहम्मद गौरी)

(iii)

1400 ई.

तैमूर (तुर्क-मंगोल)

(iv)

1526 ई.

बाबर (मुग़ल साम्राज्य की नींव, पहला शासन)

(v)

-

नादिरशाह

(vi)

1700 ई. से 1946 ई.

अंग्रेज़

(ख) अंग्रेज़ी राज्य अन्य पहले आक्रमणकारियों से बिल्कुल विपरीत था। पहले के आक्रमणकारी भारत की अतुल धन संपदा को लूट कर ले जाते थे। भारत में रहने का उनका कोई मुख्य उद्देश्य नहीं था। बस मुगल साम्राज्य को छोड़कर अधिकतर ने भारत की अतुल संपदा को लूटा है और यहाँ की सभ्यता का नाश करने का प्रयास किया है। परन्तु अंग्रेज़ी सरकार इसे अपने उपनिवेश के रूप में रखना चाहती थी और उसने किया भी। वे यहाँ पर खून-खराबा करना नहीं चाहते थे। वे भारत को अपना गुलाम बनाकर कच्चा माल पाने के लिए उपनिवेश के रूप में इस्तेमाल करना चाहते थे। दमन तो उन्होंने भी किया पर वह सिर्फ़ विद्रोह होने पर इसका सहारा लेते। उन्होंने आरंभ में अपने पैर शांतिपूर्वक जमाए। व्यापार के माध्यम से भारत में दाखिल हुए और धीरे-धीरे अपनी प्रभुता कायम की। यहाँ उन्होंने युद्धों या आक्रमणों के स्थान पर अपनी बुद्धि का प्रयोग किया और पूरे भारत पर कब्ज़ा कर लिया।

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Question 23:

() अंग्रेज़ी सरकार शिक्षा के प्रसार को नापसंद करती थी। क्यों?

() शिक्षा के प्रसार को नापसंद करने के बावजूद अंग्रेज़ी सरकार को शिक्षा के बारे में थोड़ा-बहुत काम करना पड़ा। क्यों?

Answer:

(क) अंग्रेज़ी सरकार को भारत में शिक्षा का प्रसार करना उचित नहीं लगता था। इसका मुख्य कारण यह था कि अंग्रेज़ी सरकार भली-भाँति जानती थी, शिक्षा मनुष्य के विकास के सारे रास्तों को खोल देती है, उसको विकास के रास्ते देती है और यह मजबूती वे भारतीय समाज में नहीं आने देना चाहते थे। भारत में शिक्षा के अभाव के कारण ज़्यादातर जनता अशिक्षित थी। जिसके कारण उनका समुचित विकास नहीं हो पाया। वे उन्हीं पुराने रूढ़ियों, रीतियों में उलझे हुए थे और अंग्रेज़ी शासन के लिए यह उचित था। यदि लोग शिक्षित हो जाते तो उनमें जागृति उत्पन्न हो जाती। वे अपने अधिकारों के लिए सचेष्ट हो जाते जो अंग्रेज़ी शासन के लिए एक बड़े खतरे से कम नहीं था।

(ख) अंग्रेज़ों ने, शिक्षा का प्रसार न करने के हिमायती होते हुए भी, भारत में शिक्षा का थोड़ा बहुत प्रसार किया। इसमें भी उनका ही स्वार्थ हित था। भारत में पैर पसारने के साथ-साथ अपनी बढ़ती व्यवस्था के लिए उन्हें बड़ी संख्या में क्लर्कों को प्रशिक्षित करके तैयार करने का प्रबन्ध करना पड़ा और इन्हीं परिस्थितियों वश भारत में शिक्षा का प्रसार करना पड़ा। बेशक यह शिक्षा सीमित थी व परिपूर्ण नहीं थी, फिर भी उसने नए और सक्रिय विचारों की दिशा में भारतीयों के दिमाग की खिड़कियाँ और दरवाज़े खोल दिए जिससे भारतीय समाज में परिवर्तन होने लगा और आधुनिक चेतना का प्रसार हुआ।

Page No 129:

Question 24:

ब्रिटिश शासन के दौर के लिए कहा गया कि-"नया पूँजीवाद सारे विश्व में जो बाज़ार तैयार कर रहा था उससे हर सूरत में भारत के आर्थिक ढाँचे पर प्रभाव पड़ना ही था" क्या आपको लगता है कि अब भी नया पूँजीवाद पूरे विश्व में जो बाज़ार तैयार कर रहा है, उससे भारत के आर्थिक ढ़ाँचे पर प्रभाव पड़ रहा है? कैसे?

Answer:

इस नए पूँजीवाद ने भारतीय समाज के पूरे आर्थिक और संरचनात्मक आधार का विघटन कर दिया। यह ऐसी व्यवस्था थी जिसका संचालन होता तो बाहर से था, पर इसको भारत पर लाद दिया गया था। भारत ब्रिटिश ढ़ाँचे का औपनिवेशिक और खेतिहर पुछल्ला मात्र रह गया था। बिल्कुल हमारे आर्थिक ढाँचे पर पूँजीवाद का प्रभाव पड़ सकता है। स्थानीय उघोग-धंधे बरबाद हो रहे हैं। भारत की पूँजी बाहर जा रही है। आज भारत का पूरा बाज़ार विदेशी उत्पादनों से भरा हुआ है और हमारा सारा धन पूँजीपतियों के हाथों में जा रहा है।



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Question 25:

गाँधी जी के दक्षिण अफ्रीका से लौटने पर निम्नलिखित में किस तरह का बदलाव आया, पता कीजिए-

(क) कांग्रेस संगठन में।

(ख) लोगों में - विद्यार्थियों, स्त्रियों, उद्योगपतियों आदि में।

(ग) आज़ादी की लड़ाई के तरीकों में।

(घ) साहित्य, संस्कृति, अखबार आदि में।

Answer:

(क) गाँधी जी से पहले कांग्रेस अपनी पहचान खो रहा था। वह दलों में विभाजित हो गया, तब गाँधी जी का आगमन हुआ। उनके आने से कांग्रेस में जैसे नई जान आ गई थी। उनके नेतृत्व के कारण ही कांग्रेस देश की राष्ट्रीय पार्टी बन गई।

(ख) लोगों में नई शक्ति का संचार हुआ, विद्यार्थियों ने विद्यालय छोड़कर देश सेवा को अपनी पाठशाला बना लिया और आज़ादी की लड़ाई में कूद पड़े। स्त्रियों ने पर्दों व घरों को छोड़ पुरूषों से कंधे से कंधा मिलाकर इस संग्राम में भाग लिया।

(ग) पहले क्रांतिकारी हिंसा द्वारा आज़ादी पाने का सपना देख रहे थे। उन्होंने कई बम धमाके किए, कई अंग्रेज़ी ऑफिसरों की हत्या की, पर गाँधी जी के आने के पश्चात् इन सब में परिवर्तन आ गया। गाँधी जी ने अहिंसा पर बल दिया। उन्होंने पदयात्रा, अनशन, धरने जैसे शांतिपूर्ण उपायों को अपना हथियार बनाया। अब बम, बंदूक का स्थान अहिंसा ने ले लिया।

(घ) साहित्य, संस्कृति, अखबार आदि का विकास हुआ। पहले सिर्फ़  ब्रिटिश अख़बार ही निकलता था, परन्तु जैसे-जैसे शिक्षा का प्रसार हुआ साहित्य, संस्कृति ने भी जोर पकड़ना आरंभ किया। अब तो भारत की हर भाषा में अख़बार छपने आरंभ हो गए। इन्हीं अख़बारों द्वारा जनता में जागृति की लहर फैलाई जा सकी।

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Question 26:

"अक्सर कहा जाता है कि भारत अंतर्विरोधों का देश है।" आपके विचार से भारत में किस-किस तरह के अंतर्विरोध हैं? कक्षा में समूह बनाकर चर्चा कीजिए।

(संकेत  अमीरी-गरीबी, आधुनिकता-मध्ययुगीनता, सुविध-संपन्न-सुविधा विहीन आदि।)

Answer:

भारत अंतर्विरोधों का देश है- यह बात कई तरह से सच ही लगती है, जैसे भारत में कहीं तो अमीरी का थाह नहीं तो कहीं बहुत निर्धन लोग हैं। उच्चवर्ग में अत्यंत आधुनिकता है तो मध्ययुगीनता भी है, यहाँ शासन करने वाले भी हैं और शासित भी हैं, ब्रिटिश हैं तो भारतीय भी हैं, यहाँ सुविधाएँ भी बहुत हैं तो असुविधाओं का भी भंडार हैं, अनेकों धर्म और जातियों के लोग हैं तो अखंड एकता भी है क्योंकि इनका स्तर एक ही है। अत: यह स्पष्ट है कि भारत अंतर्विरोधों का देश है।

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Question 27:

पृष्ठ संख्या 122 पर नेहरू जी ने कहा है कि-"हम भविष्य की उस 'एक दुनिया' की तरफ़ बढ़ रहे हैं जहाँ राष्ट्रीय संस्कृतियाँ मानव जाति की अंतरराष्ट्रीय संस्कृति में घुलमिल जाएँगी।" आपके अनुसार उस 'एक दुनिया' में क्या-क्या अच्छा है और कैसे-कैसे खतरे हो सकते हैं?

Answer:

उस दुनिया में निम्नलिखित बातें अच्छी होंगी -

(1) सबको रोजगार के, शिक्षा के समान अवसर प्राप्त होंगे।

(2) सबको समानता का अधिकार प्राप्त होगा, ना कोई अमीर होगा, ना ही कोई गरीब, ना रंगभेद होगा, ना जाति पाति के भेदभाव होंगे।

(3) एकता और अखंड देश का निर्माण होगा।

(4) देश की प्रगति नए रास्तों पर बढ़ेगी।

निम्नलिखित खतरे होंगे -

(1) सबको समान रूप से रोज़गार देने के अवसरों में कहीं अराजकता ना फैल जाए क्योंकि अगर सबके लिए रोज़गार उपलब्ध नहीं हो पाया तो अंसतोष की भावना उत्पन्न होगी जिसके कारण विरोध उत्पन्न हो सकता है।

(2) सबके लिए यदि समान अवसर न प्राप्त हो तो उसकी एकता व अखंडता पर प्रभाव पड़ सकता है।

(3) अंतर्विरोधों से देश की प्रगति रूक सकती है।



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