NCERT Solutions for Class 11 Humanities Hindi Chapter 3 आवारा मसीहा are provided here with simple step-by-step explanations. These solutions for आवारा मसीहा are extremely popular among class 11 Humanities students for Hindi आवारा मसीहा Solutions come handy for quickly completing your homework and preparing for exams. All questions and answers from the NCERT Book of class 11 Humanities Hindi Chapter 3 are provided here for you for free. You will also love the ad-free experience on Meritnation’s NCERT Solutions. All NCERT Solutions for class 11 Humanities Hindi are prepared by experts and are 100% accurate.

Page No 76:

Question 1:

''उस समय वह सोच भी नहीं सकता था कि मनुष्य को दुख पहुँचाने के अलावा भी साहित्य का कोई उद्देश्य हो सकता है।'' लेखक ने ऐसा क्यों कहा? आपके विचार से साहित्य के कौन-कौन से उद्देश्य हो सकते हैं?

Answer:

शरतचंद्र के बचपन में उन्हें साहित्य दुखदायी लगता था। विद्यालय में उन्हें सीता-वनवास, चारू-पाठ, सद्भाव-सद्गुण तथा प्रकांड व्याकरण जैसी साहित्यिक रचनाएँ पढ़नी पड़ती थी। शरतचंद्र को ये अच्छी नहीं लगती थीं। पंडित जी द्वारा रोज़ परीक्षा लिए जाने पर उन्हें मार भी खानी पड़ती थी। अतः अपने बचपन में साहित्य उन्हें दुखदायी लगा। यही कारण है कि लेखक ने ऐसा कहा। हमारे विचार से साहित्य के बहुत से उद्देश्य हो सकते हैं। वे इस प्रकार हैं-
• साहित्य मनुष्य के मनोरंजन का बहुत उत्तम साधन है। इसको पढ़ने से समय अच्छा व्यतीत होता है।
• यदि मनुष्य अच्छा साहित्य पढ़ता है, तो मनुष्य का ज्ञान बढ़ाता है। उसकी सोच को नई दिशा मिलती है।
• साहित्य में इतिहास संबंधी बहुत से तथ्य विद्यमान होते हैं। साहित्य के माध्यम से इतिहास की सही जानकारी मिलती है।
• साहित्य के माध्यम से मनुष्य अपने देश, गाँव, समाज इत्यादि के समीप आ जाता है। उसमें विद्यमान सामाजिक मान्यताओं, विषमताओं, कमियों, खुबियों इत्यादि को जाना जा सकता है।

Page No 76:

Question 2:

पाठ के आधार पर बताइए कि उस समय के और वर्तमान समय के पढ़ने-पढ़ाने के तौर-तरीकों में क्या अंतर और समानताएँ हैं? आप पढ़ने-पढ़ाने के कौन से तौर-तरीकों के पक्ष में हैं और क्यों?

Answer:

उस समय और आज के समय में पढ़ाई के तरीकों में समानताएँ इस प्रकार हैं ।-
(क) पहले और आज के समय में अनुशासन का कढ़ाई से पालन करवाया जाता है। बच्चों को ज्ञान देने के स्थान पर जीविका के साधन उपलब्ध करवाने पर अधिक ध्यान दिया जाता है। यही कारण है कि उसे रटाया जाता है।
(ख) पहले बच्चों की प्रतिदिन परीक्षा लेने का  प्रावधान था। वह आज भी देखने को मिलता है। क्लास टेस्ट, एफ.ए.-1, एफ.ए.-2, एफ.ए.-3, एफ.ए.-4, एस.ए.-1 और एस.ए.-2 इत्यादि टेस्ट बच्चों को देने पड़ते हैं। इस तरह का दबाव बच्चों को पढ़ाई से दूर करता है और पढ़ाई का डर उनके मन में भर देता है।
(ग) उस समय विद्यालय में पढ़ाई को महत्व दिया जाता था। खेलकूद आदि महत्वपूर्ण नहीं थे।

पहले के समय और आज के समय में पढ़ाई के तरीकों में अंतर इस प्रकार हैं-
(क) पहले बच्चों की प्रतिभा और रुचि पर ध्यान नहीं दिया जाता था। सबको सम्मान रूप से एक ही चीज़ पढ़ाई जाती थी। परन्तु आज ऐसा नहीं है। बच्चों की रुचि तथा योग्यता को देखकर उसे आगे बढ़ाया जाता है। आरंभिक शिक्षा बेशक एक-सी हो लेकिन आगे चलकर बच्चे के पास अपना मनपसंद विषय लेने का अधिकार होता है।
(ख) पहले के समान आज शारीरिक दंड नहीं दिया जाता है। अब बच्चों को प्रेम से समझाया जाता है।
(ग) अब खेलकूद, कला आदि को भी शिक्षा के समान प्राथमिकता दी जाती है।

Page No 76:

Question 3:

पाठ में अनेक अंश बाल सुलभ चंचलताओं, शरारतों को बहुत रोचक ढंग से उजागर करते हैं। आपको कौन सा अंश अच्छा लगा और क्यों? वर्तमान समय में इन बाल सुलभ क्रियाओं में क्या परिवर्तन आए हैं?

Answer:

पाठ शरतचंद्र की बहुत-सी बाल सुलभ चंचलताओं और शरारतों से भरा पड़ा है। उनका तितली पकड़ना, तालाब में नहाना, उपवन लगाना, पशु-पक्षी पालना, पिता के पुस्तकालय से पुस्तकें पढ़ना और पुस्तकों में दी गई जानकारी का प्रयोग करना। एक बार तो उन्होंने पुस्तक में साँप के वश में करने का मंत्र तक पढ़कर उसका प्रयोग कर डाला। शरतचंद्र द्वारा उपवन लगाना और पशु-पक्षी पालने वाला अंश अच्छा लगा। यह ऐसा अंश है, जो आज के बच्चों में दिखाई नहीं देता है। शरतचंद्र जैसे कार्यों को करके हम प्रकृति के समीप आते हैं। इससे हमारा पशु-पक्षियों के प्रति प्रेमभाव बढ़ता है। आज इमारतों के जंगल में बच्चों को ऐसे कार्य करने के लिए ही नहीं मिलते हैं। आज के समय में बाल सुलभ क्रियाओं में बहुत परिवर्तन आएँ हैं। बच्चे प्रकृति के समीप कम और गेजेट्स के समीप पहुँच गए हैं। उनके हाथ में बचपन से ही ये आ जाते हैं। इनमें वे विभिन्न प्रकार की शरारतें करते दिख जाते हैं। वे इसका दुरुप्रयोग कर रहे हैं। यह उनके सही नहीं है। समय बदल रहा है और आधुनिकता का ये जहर बच्चों के बचपन को निगल रहा है।

Page No 76:

Question 4:

नाना के घर किन-किन बातों का निषेध था? शरत् को उन निषिद्ध कार्यों को करना क्यों प्रिय था?

Answer:

शरद के नाना बहुत सख्त थे। उनका मानना था कि बच्चों कार्य बस पढ़ना होना चाहिए। अतः उन्होंने बच्चों को बहुत-सी बातें करने से साफ़ मना किया हुआ था। उसमें तालाब में नहाना, पशु तथा पक्षियों को पालना, बाहर जाकर खेलना, उपवन लगाना, घूमना, पतंग, लट्टू, गिल्ली-डंडा तथा गोली इत्यादि खेल खेलना तक निषिद्ध था। जो उनकी बातें नहीं मानता था, उसे बहुत कठोर दंड दिया जाता था। शरत् स्वभाव से स्वतंत्रतापूर्वक जीने का इच्छुक था। नाना की सख्ती और रोक उसे बंधन लगती थी। वह एक विद्रोही के समान सब बंधनों को तोड़ता था। इसके लिए हिम्मत की आवश्यकता होती है और जो उसमें बहुत थी।

Page No 76:

Question 5:

आपको शरत् और उसके पिता मोतीलाल के स्वभाव में क्या समानताएँ नज़र आती हैं? उदाहरण सहित स्पष्ट कीजिए।

Answer:

शरत् के अंदर अपने पिता मोतीलाल के स्वभाव की बहुत समानताएँ विद्यमान थीं। वे इस प्रकार हैं-
• शरत् पिता के समान साहित्य पढ़ने और लिखने का शौकीन था। उसने अपने पिता के पुस्तकालय की सभी पुस्तकें पढ़ ली थीं।
• उनके पिता स्वभाव से स्वतंत्र व्यक्ति थे, शरत् भी ऐसा ही था। उसने कभी बंधकर रहना नहीं सीखा था। अतः नाना के हज़ार बंधन उसे रोक नहीं पाए।
• शरत् तथा उसके पिता सभी लोगों को समान दृष्टि से देखते थे। उनके लिए कोई बड़ा-छोटा नहीं था।
• उसका सौंदर्य बोध पिता के समान ही था। जो उनके लेखन में स्पष्ट रूप से झलकता है।
• वह पिता के समान यायावार प्रकृति के व्यक्ति था। एक स्थान पर टिकना उसके लिए संभव नहीं था।

Page No 76:

Question 6:

शरत् की रचनाओं में उनके जीवन की अनेक घटनाएँ और पात्र सजीव हो उठे हैं। पाठ के आधार पर विवेचना कीजिए।

Answer:

शरत् की रचनाओं में जिन घटनाओं का उल्लेख हुआ है, वे सच में उनके जीवन की अनेक घटनाएँ और पात्र हैं। उन्होंने अपने जीवन में जो भोगा, जिन लोगों को पाया, जो अनुभव प्राप्त किया उसे अपनी रचनाओं में उतार डाला। ये ऐसा विवरण है, जिनसे हमें शरत् के जीवन का परिचय मिल जाता है। उसके मन तथा जीवन की थाह मिल जाती है। नीचे दी जानकारी से वह स्पष्ट हो जाएगा-
(क) शरत् ने बचपन में बाग से बहुत आम चुराकर खाए थे। यदि कभी पकड़े जाते, तो मिलने वाली सज़ा से भागे नहीं बल्कि किसी वीर के समान उसे भोगा था। उनके पात्र देवदास, श्रीकांत, दर्दांतराम और सव्यसाची शरत के जीवन की झलक देते हैं।
(ख) शरत् स्वभाव से अपरिग्रही था। उसे जो मिलता था, वह दूसरों में बाँट देता था। इस कारण शरतचंद्र की पात्र 'बड़ी बहू' बहुत परेशान थी।
(ग) साँप को वश में करने की कला को उन्होंने अपने पिता के पुस्तकालय में एक पुस्तक से सीखा था। वैसे तो यह बात सत्य नहीं थी परन्तु अपनी रचना 'श्रीकांत' तथा 'विलासी' रचना में इस विद्या के विषय में उन्होंने बताया है।
(घ) उनके पिता घर-जँवाई बनकर रहे थे। अतः 'काशीनाथ' का पात्र काशीनाथ ऐसा ही व्यक्ति था, जो घर-जँवाई बनकर रहता है।
(ङ) उनकी माता द्वारा अपने पति को काम न किए जाने पर ठेस पहुँचाना और पिता मोतीलाल का इस बात पर घर से निकल जाना। इसी घटना का वर्णन उन्होंने 'शुभदा' के हारान बाबू के रूप में किया है।
(च) शरत की मित्र धीरू थी। दोनों में बहुत गहरी मित्रता था। धीरू के चरित्र को उन्होंने 'पारो' (देवदास), 'माधवी' (बड़ी दीदी) तथा 'राजलक्ष्मी' (श्रीकांत) के रूप में चित्रण किया है।  
(छ) उनकी रचना में एक विधवा स्त्री का उल्लेख मिलता है।  उसके  बहनोई तथा देवर की उस पर बुरी दृष्टि है। उसने एक बार बीमार शरत् की सहायता की थी। वह इन दो राक्षसों से स्वयं को बचाना चाहती थी। अतः जब ठीक होकर शरत् घर को जाने लगे, तो वह उनके पीछे चल पड़ी। उसे खोजते हुए दोनों राक्षस आ गए और शरत् को मारकर उसे बलपूर्वक अपने साथ ले गए। 'चरित्रहीन' रचना में इसी घटना का उल्लेख मिलता है।
(ज) 'शुभदा'  में उन्होंने अपनी गरीबी का भयानक और मार्मिक चित्रण किया है।

इस आधार पर हम कह सकते हैं कि शरत् की रचनाओं में उनके जीवन की अनेक घटनाएँ और पात्र सजीव हो उठे हैं।

Page No 76:

Question 7:

''जो रुदन के विभिन्न रूपों को पहचानता है वह साधारण बालक नहीं है। बड़ा होकर वह निश्चय ही मनस्तत्व के व्यापार में प्रसिद्ध होगा।'' अघोर बाबू के मित्र की इस टिप्पणी पर अपनी टिप्पणी कीजिए।

Answer:

अघोर बाबू के मित्र ने जो टिप्पणी की वह बालक के भाव व्यापार को समझने की क्षमता के आधार पर की थी। अघोर बाबू के मित्र जानते थे कि साहित्य सृजन के लिए मनुष्य का अति संवेदनशील होना आवश्यक है। शरत् में यह गुण विद्यमान था। छोटे से ही उनमें संवेदनशीलता का गुण आ गया था। वह अपने आस-पास के वातावरण तथा परिवेश का सूक्ष्म निरीक्षण करने में दक्ष थे। अतः अघोर बाबू जानते थे कि जिस बालक में इस प्रकार की क्षमता इस समय मौजूद है, तो आगे चलकर यह बालक मनस्तत्व के व्यापार में प्रसिद्ध होगा। ऐसा बालक उस संवेदना को पूर्णरूप से कागज़ में पात्रों के माध्यम से उकेर पाएगा। उनका यह कथन आगे चलकर सत्य भी सिद्ध हुआ। उनकी प्रत्येक रचना इस बात का प्रमाण है।



View NCERT Solutions for all chapters of Class 14