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Board Paper of Class 10 2006 Hindi (SET 3) - Solutions

(i) इस प्रश्न-पत्र के चार खण्ड हैं क, ख, ग और घ।
(ii) चारों खण्डों के प्रश्नों के उत्तर देना अनिवार्य है।
(iii) यथासंभव प्रत्येक खण्ड के उत्तर क्रमश: दीजिए।


  • Question 1

    निम्नलिखित गद्यांश के आधार पर दिए गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए –

    उसी पुस्तकालय में एक युवती छोटे से मंच पर अपने सामने कंप्यूटर रखे उस पर काम कर रही थी। वह भी गांव की ही लड़की थी जो पढ़ लिखकर कंप्यूटर पर हिसाब-किताब का काम करने लगी थी। उस ग्रामीण परिप्रेक्ष्य में उसे कंप्यूटर पर काम करते देखकर निश्चय ही बड़ा अच्छा लगा। संस्थान अपने कार्यकलाप में जहाँ अतीत से जुड़ता था और परंपरागत अनुभवों-प्रथाओं से लाभ उठाना चाहता था, वहाँ वर्तमान और भविष्य से भी जुड़ता था, अपनी दृष्टि में भविष्योन्मुखी था।

    पुस्तकालय में से निकले ही थे कि और बड़ा सुखद अनुभव हुआ। एक विकलांग युवती, बैसाखियों के सहारे, बरामदे की ओर चली आ रही थी। कोई ग्रामीण लड़की ही रही होगी, पर खिला-खिला चेहरा, साफ़-सुथरे कपड़े, चेहरे पर झलकता आत्मविश्वास, हल्की-सी मुसकराहट। मानो संस्थान में आए लोगों का स्वागत कर रही हो। उसने हाथ जोड़ कर नमस्कार किया। उसे देखकर मुझे लगा जैसे उसके चेहरे पर खिली आत्मविश्वास भरी मुसकराहट इसी संस्थान की देन है जिसने यहाँ के लोगों को अपने व्यक्तित्व का बोध कराया है। पुस्तकालय से निकलकर हम लोग अब एक सभागार में प्रवेश कर रहे थे। बड़ा-सा हॉल, कमरा, फ़र्श पर दरियाँ, छत पर से लटकते पंखे चल रहे थे, और सभागार संस्थान के सक्रिय कार्यकर्ताओं, ग्रामीण पुरूषों-स्त्रियों से भरा था।

    मैं कुछ-कुछ अपने ही आग्रह पर यहाँ पहुँच गया था, संस्थान के कार्यकलाप का पहलू देखने के लिए। क्योंकि न तो मुझे विचाराधीन विषय की जानकारी थी, और यदि यह जानकारी होती भी तो भी मेरे पल्ले कुछ भी पड़ने वाला नहीं था, क्योंकि उनका विचार-विमर्श अपनी स्थानीय बोली में चलने वाला था। पर फिर भी मेरे लिए देखने-जानने को बहुत कुछ था।

    सभागार में ग्रामीण स्त्रियाँ-पुरूष बैठे थे, स्त्रियाँ प्रथानुसार एक ओर, पुरूष दूसरी ओर। बातचीत बड़े अनौपचारिक ढंग से चल रही थी। एक बूढ़ी अम्मा, हाथ पसार-पसार कर अपना तर्क सुना रही थीं। जिस तरह हाथ पसार रही थीं मुझे लगा बड़ी गर्मजोशी में बोल रही हैं, पर फिर स्वयं ही कभी-कभी अपने पोपले मुँह पर हाथ रखकर हँसने लगती थीं... मैं देश की जनतांत्रिक पद्धति की एक गर्वीली इकाई का कार्यकलाप देख रहा था। बहुत कुछ देखा था, जो सचमुच स्फूर्तिदायक था, प्रेरणाप्रद था। मुझे अपने कमरे की ओर ले जाते हुए संस्थान के प्रतिनिधि मुझे संस्थान की मूल अवधारणाओं के बारे में बता रहे थे। यहाँ काम करने वाले अधिकतर लोग गाँव के ही युवक-युवतियाँ थे जिन्होंने पाँचवीं कक्षा से लेकर बारहवीं कक्षा तक की तालीम पाई थी। फिर अभ्यासवश अपने पपोटों पर ऊँगली चलाते हुए बोले - "यहाँ सभी बराबर हैं, सभी को मान्यता मिलती है, परंतु यदि प्राथमिकता दी जाती है तो गरीब ग्रामीणों को, स्त्रियों को और निम्न जाति के लोगों को।

    यहाँ कोई बड़ा या छोटा नहीं है। यहाँ सभी सीखना चाहते हैं, सीखने के इच्छुक हैं। गाँधी जी के कथनानुसार, गाँव का कोई भी मामूली पढ़ा-लिखा व्यक्ति कोई-न-कोई हुनर सीख सकता है। उसके लिए शहरी शिक्षा की डिग्रियाँ लेने की कोई ज़रूरत नहीं है। यहाँ पैसे के प्रलोभन के लिए कोई स्थान नहीं है। धन बटोरने की इच्छा से यहाँ कोई काम नहीं करता। नंगे पाँव चलने वाले इस संस्थान में हर प्रकार की पहलकदमी को प्रोत्साहित किया जाता है। यहाँ स्त्रियों को समानाधिकार प्राप्त है। यहाँ भी गाँधी जी के कथनानुसार वे किसी से पीछे नहीं हैं, मामूली पढ़ाई कर चुकने पर भी स्त्रियाँ, बड़ी कुशलता से कंप्यूटर पर काम कर रही हैं, पानी के नल मरम्मत कर रही हैं, सौर-ऊर्जा के उपकरण लगा रही हैं, और पानी के तालों की व्यवस्था कर रही हैं। और सामान्यत: उनका काम पूरूषों की तुलना में इक्कीस ही है, बीस नहीं।

    संस्थान में व्यक्ति को रचनात्मक तथा सकारात्मक विकास के लिए सुविधाएँ प्राप्त होंगी। संस्थान देश के संविधान के अनुरूप और अहिंसा से प्रेरित साधनों द्वारा सामाजिक न्याय को क्रियान्वित करेगा। संस्थान ऐसी टेक्नालॉजी को मान्यता नहीं देगा, जिससे लोगों की रोज़ी-रोटी पर बुरा असर पड़े।"

    दूसरे दिन प्रात: अपने शहर लौटने से पहले, संस्थान के डायरेक्टर, श्री बंकर राय से घड़ी भर के लिए मिलने का सुअवसर मिला, पिछले तीस वर्ष से वे इस संस्थान का संचालन करते आ रहे थे, और उन्होंने इसे एक विरल, प्रतिष्ठित, ख्याति-प्राप्त संस्था का रूप दिया था। कोई भी व्यक्ति जो गरीब ग्रामवासियों की क्षमताओं को इतनी लगन और निष्ठा के साथ निर्माण कार्यों में लगा सकता है, वह निश्चय ही श्रद्धा का पात्र है।

    उन्हीं से मिलने पर पता चला कि उस संस्थान की, जिसे उन्होंने और उनके सहकर्मियों ने नंगे पाँव आगे बढ़ने वाले संस्थान की संज्ञा दे रखी थी, ख्याति अब दूर-दूर तक पहुँचने लगी है। कुछ ही समय पहले इस संस्थान को अंतर्राष्ट्रीय संस्था, आगा खाँ फाउंडेशन द्वारा बहुत बड़े पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। दिल्ली की ओर हमारी जीप बढ़ने लगी है। तिलोनिया पीछे छूट चुका है। पर बार-बार मन में एक ही वाक्य उठता है कि तिलोनिया नहीं, बीसियों, सैंकड़ों तिलोनिया उठ खड़े हों – देश की गरीब जनता का आत्म-विश्वास और आत्म-सम्मान बढ़ाने वाले, देश की प्रगति के पथ पर ले जाने वाले।

    (i) लेखक को एक लड़की द्वारा कंप्यूटर पर काम करते देखना अच्छा क्यों लगा? (2)

    (ii) लेखक को विकलांग लड़की को देखकर कैसा अनुभव हुआ? (2)

    (iii) लेखक ने सभागार में क्या देखा? (2)

    (iv) तिलोनिया के संस्थान में स्त्रियों से कैसा व्यवहार किया जाता है? (2)

    (v) उपरोक्त गद्यांश का शीर्षक दीजिए। (2)

    (vi) 'सामाजिक न्याय' तथा 'प्राथमिकता' शब्दों को अपने वाक्यों में प्रयोग कीजिए (2)

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  • Question 2

    निम्नलिखित काव्यांश को ध्यान पूर्वक पढ़कर दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए – 
    उसे दरवाज़े पर रखकर
    चला गया है माली
    उसका वहाँ होना
    अटपटा लगता है मेरी आँखों को
    पर जाते हुए दिन की
    धुँधली रोशनी में
    उसकी वह अजब अड़बंग-सी धूल भरी
    धज
    आकर्षित करती है मुझे
    काम था
    सो हो चुका है
    मिट्टी थी
    सो खुद चुकी है जड़ों तक
    और अब कुदाल है कि एक चुपचाप
    चुनौती की तरह
    खड़ी है दरवाज़े पर
    सोचता हूँ उसे वहाँ से उठाकर
    ले जाऊँ अंदर
    और रख दूँ किसी कोने में
    ड्राइंग-रूम कैसा रहेगा-
    मैं सोचता हूँ
    न सही कुदाल
    एक अलंकार ही सही
    यदि वहाँ रह सकती है नागफनी
    तो कुदाल क्यों नहीं?
    पर नहीं – मेरे मन ने कहा
    कुदाल नहीं रह सकती ड्राइंग-रूम में
    इससे घर का संतुलन बिगड़ सकता है
    फिर किया क्या जाय मैंने सोचा
    कि तभी ख्याल आया
    उसे क्यों न छिपा दूँ
    पलंग के नीचे के अंधेरे में
    इससे साहस थोड़ा दबेगा ज़रूर
    पर हवा में जो भर जाएगी एक रहस्य की
    गंध
    उससे घर की गरमाहट कुछ बढ़ेगी ही
    लेकिन पलंग के नीचे कुदाल?
    मैं ठठाकर हँस पड़ा इस अद्भुत बिंब पर
    अंत में कुदाल के सामने रूककर
    मैंने कुछ देर सोचा कुदाल के बारे में
    सोचते हुए लगा उसे कंधे पर रखकर
    किसी अदृश्य अदालत में खड़ा हूँ मैं
    पृथ्वी पर कुदाल के होने की गवाही में

    (i) माली किस वस्तु को घर के दरवाज़े पर रखकर चला गया और क्यों? (2)

    (ii) कवि ने कुदाल को दरवाज़े के निकट रख कर क्या सोचा? (2)

    (iii) 'यदि वहाँ रह सकती है नागफनी 

          तो कुदाल क्यों नहीं'
         आशय स्पष्ट कीजिए। (2)

    (iv) कुदाल के बारे में सोचते हुए कवि को क्या महसूस हुआ? (2)

    अथवा

    छोड़ो मत अपनी आज सीस कट जाए।
    मत झुको अनय पर, भले व्योम फट जाए।
    दो बार नहीं यमराज कण्ठ धरता है,
    मरता है जो, एक ही बार मरता है।
    तुम स्वयं मरण के मुख पर चाप धरो रे।
    जीना हो तो मरने से नहीं डरो रे।
    स्वातंत्र्य जाति की लगन व्यक्ति की धुन है,
    बाहरी वस्तु यह नहीं भीतरी गुण है। नत हुए बिना जो अशनि घात सहती है,
    स्वाधीन जगत में वही जाति रहती है।
    वीरत्व छोड़ पर का मत चरण गहो रे।
    जो पड़े आन, खुद ही सब आग सहो रे।

    (i) 'व्यक्ति को अत्याचार के आगे नहीं झुकना चाहिए।' इस तथ्य को किन पंक्तियों में स्पष्ट किया गया है? (2)

    (ii) 'दो बार नहीं यमराज कण्ठ धरता है' पंक्ति का आशय स्पष्ट कीजिए। (2)

    (iii) जगत में कौन-सी जाति स्वाधीन रह सकती है? (2)

    (iv) इन पंक्तियों के माध्यम से कवि ने क्या सन्देश दिया है? (2)

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  • Question 3

    निम्नलिखित में से किसी एक विषय पर लगभग 300 शब्दों का निबन्ध लिखिए –

    (क) घर बालक की प्रारम्भिक पाठशाला होती है। माता-पिता प्रथम शिक्षक होते हैं। विद्यालय में शिक्षक ही माता-पिता होते हैं। शिक्षक का दायित्व पढ़ाना तथा सत्यकार्यों के लिए प्रेरणा देना होता है। छात्रों का भी परिवार तथा समाज के प्रति दायित्व होता है। इन तथ्यों के आधार पर छात्र और शिक्षक विषय पर निबन्ध लिखिए।

    (ख) प्रकृति और मानव का सम्बन्ध बहुत गहरा है। सुन्दर प्राकृतिक स्थलों को देखकर मानव को आनंद मिलता है। आपने कुछ समय पूर्व कौन से प्राकृतिक स्थल की यात्रा की। वहाँ जाने का आपको कब और कैसे अवसर मिला। वहाँ के प्राकृतिक सौंदर्य का वर्णन कीजिए।

    (ग) आलसी व्यक्ति ही दैव (भाग्य) का सहारा लेता है। भाग्यवादी निकम्मा होता है तथा विघ्न-बाधाओं का मुकाबला करने से डरता है। ऐसे व्यक्ति निराश, उदासीन और पराश्रित रहते हैं। वस्तुत: परिश्रम ही सौभाग्य का निर्माता है। इन्हीं तथ्यों के आधार पर 'दैव-दैव आलसी पुकारा' विषय पर निबन्ध लिखिए।

     

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  • Question 4

    बाल भवन, उदयपुर के विवेक व्यास की ओर से उसके मित्र के पिता की असामयिक मृत्यु पर एक संवेदना पत्र लिखिए।

    अथवा

    कावेरी छात्रावास के अधीक्षक को अनुराधा की ओर से पत्र लिखकर, छात्रावास की भोजनशाला के निरंतर गिरते स्तर की ओर उनका ध्यान आकृष्ट कीजिए।

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  • Question 5

    निम्नलिखित वाक्यों में प्रयुक्त क्रियाओं के भेद लिखिए – 

    (i) मोहन बाज़ार जाएगा।

    (ii) नौकर ने कुत्ते को दूध पिलाया।

    (iii) वह बैठा है।

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  • Question 6

    निर्देशानुसार उत्तर दीजिए – 

    (i) मोहन और राधा एक ही विद्यालय में पढ़ते हैं। (समुच्चयबोधक छाँटिए)

    (ii) मनोहर यहाँ आया था। (क्रिया विशेषण छाँटिए)

    (iii) परीक्षा से पहले खूब पढ़ो। (संबंधबोधक छाँटिए)

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  • Question 7

    निम्नलिखित वाक्यों को मिलाकर सरल, संयुक्त और मिश्र वाक्य में परिवर्तित कीजिए –

    (i) इस वर्ष हमारे विद्यालय में बहुत से वक्ता पधारे।

    (ii) कुछ वक्ता धर्म पर बोले।

    (iii) कुछ वक्ता वैज्ञानिक विषयों पर बोले।

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  • Question 8

    निम्नलिखित वाक्यों का वाच्य परिवर्तन कीजिए –

    (i) राम नहीं चलता।

    (ii) राधा से रात भर कैसे जागा जाएगा?

    (iii) पक्षियों से उड़ा जाता है।

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  • Question 9

    (i) निम्नलिखित शब्दों का समास विग्रह कीजिए और उसका भेद भी बताइए – (2)

         रत्नजड़ित, राजा-रानी

    (ii) निम्नलिखित शब्दों के एकाधिक अर्थ लिखिए – (1)

         अधर, ग्रहण

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  • Question 10

    निम्नलिखित काव्यांश के नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए –
    (क) नाथ संभुधनु भंजनिहारा
    होइहि केउ एक दास तुम्हारा।।
    आयेसु काह कहिअ किन मोही।
    सुनि रिसाइ बोले मुनि कोही।।
    सेवकु सो जो करै सेवकाई।
    अरिकरनी करि करिअ लराई।।
    सुनहु राम जेहि सिवधनु तोरा।
    सहसबाहु सम सो रिपु मोरा।।
    सो बिलगाउ बिहाइ समाजा।
    न त मारे जैहहिं सब राजा।।
    सुनि मुनिबचन लखन मुसकाने।
    बोले परसुधरहि अवमाने।।
    बहु धनुही तोरी लरिकाईं।
    कबहुँ न असि रिस कीन्हि गोसाईं।।
    येहि धनु पर ममता केहि हेतू।
    सुनि रिसाइ कह भृगुकुलकेतू।।
    रे नृपबालक कालबस बोलत तोहि न सँभार।
    धनुही सम त्रिपुरारिधनु बिदित सकल संसार।।

    (i) धनुष टूटने के पश्चात परशुराम ने क्या कहा? (2)

    (ii) परशुराम के वचन सुनकर लक्ष्मण क्यों मुसकाए? (2)

    (iii) लक्ष्मण ने परशुराम से क्या कहा? (2)

    अथवा

    (ख) फटिक सिलानि सौं सुधार्यौ सुधा मंदिर,
    उद्धि दधि को सो अधिकाइ उमगे अमंद।
    बाहर ते भीतर लौं भीति न दिखैए 'देव',
    दूध को सो फेन फैल्यो आँगन फरसबंद।
    तारा सी तरूनि तामें ठाढ़ी झिलमिली होति,
    मोतिन की जोति मिल्यो मल्लिका को मकरंद।
    आरसी से अंबर में आभा सी उजारी लगै,
    प्यारी राधिका को प्रतिबिंब सो लगत चंद।।

    (i) चांदनी रात की कान्ति प्रकट करने के लिए कवि ने कौन-से बिम्ब का प्रयोग किया है? (2)

    (ii) कवि ने चंद्रमा के लिए किस उपमान का प्रयोग किया है? (2)

    (iii) 'तारा सी तरूनि तामें' में कौन-से अलंकार का प्रयोग किया गया है? (2)

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  • Question 11

    निम्नलिखित प्रश्नों में से किन्हीं तीन का उत्तर दीजिए – (3 + 3 + 3)

    (i) देव कवि ने 'ब्रजदूलह' किसके लिए प्रयुक्त किया है और उन्हें संसार रुपी मंदिर का दीपक क्यों कहा है?

    (ii) 'यह दंतुरित मुसकान' कविता के आधार पर स्पष्ट कीजिए कि बच्चे की मुसकान और एक बड़े व्यक्ति की मुसकान में क्या अंतर है?

    (iii) 'कन्यादान' कविता में लड़की की जो छवि आपके सामने उभर कर आती है, उसे शब्द-बद्ध कीजिए।

    (iv) संगतकार किन-किन रुपों में मुख्य गायक-गायिकाओं की मदद करते हैं?

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  • Question 12

    निम्नलिखित काव्यांशों में से किसी एक को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए –
    (क) हरि हैं राजनीति पढ़ि आए।
    समुझी बात कहत मधुकर के, समाचार सब पाए।
    इक अति चतुर हुते पहिलैं ही, अब गुरू-ग्रंथ पढ़ाए।
    बढ़ी बुद्धि जानी जो उनकी, जोग-सँदेस पठाए।
    ऊधौ भले लोग आगे के, पर हित डोलत धाए।
    अब अपनै मन फेर पाइ हैं, चलत जु हुते चुराए।
    ते क्यौं अनीति करैं आपुन, जे और अनीति छुड़ाए।
    राज धरम तौ यहै 'सूर', जो प्रजा न जाहिं सताए।

    (i) गोपियाँ उद्धव से पहले के लोगों के विषय में क्या कहती हैं? (1)

    (ii) 'अब गुरू-ग्रंथ पढ़ाए' में कौन-सा अलंकार है? (1)

    (iii) इस पद में किस भाषा का प्रयोग किया गया है? (1)

    (iv) गोपियाँ राज धर्म के विषय में क्या कहती हैं? (1)

    (v) यह पद हिन्दी साहित्य के किस काल से सम्बन्धित है? (1)

    अथवा

    (ख) यह बताने के लिए कि वह अकेला नहीं है
    और यह कि फिर से गाया जा सकता है
    गाया जा चुका राग
    और उसकी आवाज़ में जो एक हिचक साफ़ सुनाई
    देती है
    या अपने स्वर को ऊँचा न उठाने की जो कोशिश है
    उसे विफलता नहीं
    उसकी मनुष्यता समझा जाना चाहिए।

    (i) इन पंक्तियों में किस छन्द का प्रयोग किया गया है? (1)

    (ii) संगतकार अपने स्वर को ऊँचा नहीं उठाता। क्या इसे उसकी विफलता कहा जा सकता है? (1)

    (iii) संगतकार की आवाज़ से एक हिचक-सी क्यों प्रतीत होती है? (1)

    (iv) इन पंक्तियों का सम्बन्ध हिन्दी साहित्य के किस काल से है? (1)

    (v) इन पंक्तियों में से कोई दो तत्सम शब्द छाँटकर लिखिए। (1)

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  • Question 13

    निम्नलिखित गद्यांश के नीचे दिए गए प्रश्नों में से किन्हीं तीन प्रश्नों के उत्तर दीजिए – 

    नवाब साहब ने सतृष्ण आँखों से नमक-मिर्च के संयोग से चमकती खीरे की फाँकों की ओर देखा। खिड़की के बाहर देखकर दीर्घ निश्वास लिया। खीरे की एख फाँक उठाकर होंठों तक ले गए। फाँक को सूँघा। स्वाद के आनंद में पलकें मुँद गईं। मुँह में भर आए पानी का घुँट गले से उतर गया। तब नवाब साहब ने फाँक को खिड़की से बाहर छोड़ दिया। नवाब साहब खीरे की फाँकों को नाक के पास ले जाकर, वासना से रसावस्वादन कर खिड़की के बाहर फेंकते गए।

    नवाब साहब ने खीरे की सब फाँकों को खिड़की के बाहर फेंककर तौलिए से हाथ और होंठ पोंछ लिए और गर्व से गुलाबी आँखों से हमारी ओर देख लिया, मानो कह रहे हों – यह है खानदानी रईसों का तरीका!

    नवाब साहब खीरे की तैयारी और इस्तेमाल से थककर लेट गए। हमें तसलीम में सिर खम कर लेना पड़ा – यह है खानदानी तहज़ीब, नफ़ासत और नज़ाकत!

    हम गौर कर रहे थे, खीरा इस्तेमाल करने के इस तरीके को खीरे की सुगंध और स्वाद की कल्पना से संतुष्ट होने का सूक्ष्म, नफ़ीस या एब्स्ट्रैक्ट तरीका ज़रूर कहा जा सकता है परंतु क्या ऐसे तरीके से उदर की तृप्ति भी हो सकती है?

    नवाब साहब की ओर से भरे पेट के ऊँचे डकार का शब्द सुनाई दिया और नवाब साहब ने हमारी ओर देखकर कह दिया, 'खीरा लज़ीज़ होता है लेकिन होता है सकील, नामुराद मेदे पर बोझ डाल देता है।'

    ज्ञान-चक्षु खुल गए! पहचाना – ये हैं नई कहानी के लेखक!

    खीरे की सुंगध और स्वाद की कल्पना से पेट भर जाने का डकार आ सकता है तो बिना विचार, घटना और पात्रों के, लेखक की इच्छा मात्र से' नयी कहानी' क्यों नहीं बन सकती?

    (i) नवाब साहब ने खीरे की फाँकों को सतृष्ण दृष्टि से क्यों देखा? (1½)

    (ii) नवाब साहब ने खीरे की फाँकों को ट्रेन की खिड़की से बाहर क्यों फेंक दिया? (1½)

    (iii) नवाब साहब की यह हरकत देखकर लेखक क्या सोचने लगा? (1½)

    (iv) लेखक ने नयी कहानी के लेखकों पर क्या व्यंग्य किया है? (1½)

    अथवा

    अक्सर कहते हैं - 'क्या करें मियाँ, ई काशी छोड़कर कहाँ जाएँ, गंगा मइया यहाँ, बाबा विश्वनाथ यहाँ, बालाजी का मंदिर यहाँ, यहाँ हमारे खानदान की कई पुश्तों ने शहनाई बजाई है, हमारे नाना तो वहीं बालाजी मंदिर में बड़े प्रतिष्ठित शहनाईवाज़ रह चुके हैं। अब हम क्या करें, मरते दम तक न यह शहनाई छूटेगी न काशी। जिस ज़मीन ने हमें तालीम दी, जहाँ से अदब पाई, वो कहाँ और मिलेगी? शहनाई और काशी से बढ़कर कोई जन्नत नहीं इस धरती पर हमारे लिए।'

    काशी संस्कृति की पाठशाला है। शास्त्रों में अनंदकानत के नाम से प्रतिष्ठित। काशी में कलाधर हनुमान व नृत्य-विश्वनाथ हैं। काशी में बिस्मिल्ला खाँ हैं। काशी में हज़ारों सालों का इतिहास है जिसमें पंडित कंठे महाराज हैं, विद्याधरी हैं, बड़े रामदास जी हैं, मौजुद्दीन खाँ हैं व इन रसिकों से उपकृत होने वाला अपार जन-समूह है। यह एक अलग काशी है जिसकी अलग तहज़ीब है, अपनी बोली और अपने विशिष्ट लोग हैं। नके अपने उत्सव हैं, अपना गम। अपना सेहरा-बन्ना और अपना नौहा। आप यहाँ संगीत को भक्ति से, भक्ति को किसी भी धर्म के कलाकार से, कजरी को चैती से, विश्वनाथ को विशालाक्षी से, बिस्मिल्ला खाँ को गंगाद्वार से अलग करके नहीं देख सकते।

    (i) बिस्मिल्ला खाँ काशी छोड़कर अन्यत्र क्यों नहीं जाना चाहते? (2)

    (ii) काशी को संस्कृति की पाठशाला क्यों कहा गया है? (2)

    (iii) काशी को शास्त्रों में आनंदकानन क्यों कहा गया है? (2)

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  • Question 14

    निम्नलिखित में से किन्हीं तीन प्रश्नों के उत्तर दीजिए – (3 + 3 + 3)

    (i) लेखक को नवाब साहब के किन हाव-भावों से महसूस हुआ कि वे उनसे बातचीत करने के लिए तनिक भी उत्सुक नहीं हैं?

    (ii) 'एक कहानी यह भी' में लेखिका के पिता ने रसोई को 'भटियारखाना' कहकर क्यों संबोधित किया है?

    (iii) स्पष्ट कीजिए कि बिस्मिल्ला खाँ वास्तविक अर्थों में एक सच्चे इंसान थे।

    (iv) 'संस्कृति' निबंध के आधार पर स्पष्ट कीजिए कि मानव संस्कृति एक अविभाज्य वस्तु है।

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  • Question 15

    (i) हालदार साहब हमेशा चौराहे पर अपनी गाड़ी क्यों रोकते थे? (3)

    (ii) 'स्त्रियों को पढ़ाने से अनर्थ होते हैं' – कुतर्कवादियों की इस दलील का खंडन द्विवेदी जी ने कैसे किया है, अपने शब्दों में लिखिए। (2)

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  • Question 16

    'साना-साना हाथ जोड़ि' के आधार पर स्पष्ट कीजिए कि प्राकृतिक सौंदर्य के अलौकिक आनंद में डूबी लेखिका को कौन-कौन से दृश्य झकझोर गए?

    अथवा

    आज की पत्रकारिता में चर्चित हस्तियों के पहनावे और खानपान सम्बन्धी आदतों आदि के वर्णन का दौर चल पड़ा हैं। इस प्रकार की पत्रकारिता के बारे में आपके क्या विचार हैं?

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  • Question 17

    निम्नलिखित प्रश्नों में से किन्हीं तीन प्रश्नों के उत्तर दीजिए – (2 + 2 + 2 )

    (i) सैलानियों को प्रकृति की अलौकिक छटा का अनुभव करवाने में किन-किन लोगों का योगदान होता है?

    (ii) आज की पीढ़ी द्वारा प्रकृति के साथ किस तरह का खिलवाड़ किया जा रहा है? इसे रोकने में आपकी क्या भूमिका होनी चाहिए?

    (iii) कठोर हृदय समझी जाने वाली दुलारी टुन्नू की मृत्यु पर क्यों विचलित हो उठी?

    (iv) लेखक को कैसे लगा कि वह स्वयं हिरोशिमा के विस्फोट का भोक्ता बन गया?

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