uddhav our gopi ke beech me samvad 25 shabdon me
कृष्ण- अरे उद्धव! तुम आ गए और बताओ कैसी रही मुथरा की यात्रा? मैंने तुम्हें जो काम दिया था वो पूरा कर दिया न। गोपियों को समझा दिया न।
उद्धव- प्रभु! मुझे क्षमा करें। मैं प्रेम की महिमा को समझा ही नहीं। वो सारी गोपियाँ मेरी गुरु हैं, उन्होंने मुझे बताया कि प्रेम क्या होता है, उसे पाने वाला कैसे सब पा लेता है।
कृष्ण- अरे वाह! ज्ञानी व्यक्ति अज्ञानियों से प्रेम सीख आए हैं। उद्धव जो मनुष्य प्रेम के सही अर्थ को नहीं समझते, वे ज्ञानी कहलाने के अधिकारी नहीं हैं। प्रेम ही ऐसा तत्व है, जो ज्ञान का मार्ग को सरल तथा पवित्र बना देता है। प्रेम करोगे, तो समझोगे कि जीवन बिना प्रेम के कितना नीरस है।
उद्धव- प्रभु सीख लिया है प्रेम करना। अब मेरी प्रीति आपके चरणों में ही है। मैं स्वयं कृष्णमय होकर आ रहा हूँ।
उद्धव- प्रभु! मुझे क्षमा करें। मैं प्रेम की महिमा को समझा ही नहीं। वो सारी गोपियाँ मेरी गुरु हैं, उन्होंने मुझे बताया कि प्रेम क्या होता है, उसे पाने वाला कैसे सब पा लेता है।
कृष्ण- अरे वाह! ज्ञानी व्यक्ति अज्ञानियों से प्रेम सीख आए हैं। उद्धव जो मनुष्य प्रेम के सही अर्थ को नहीं समझते, वे ज्ञानी कहलाने के अधिकारी नहीं हैं। प्रेम ही ऐसा तत्व है, जो ज्ञान का मार्ग को सरल तथा पवित्र बना देता है। प्रेम करोगे, तो समझोगे कि जीवन बिना प्रेम के कितना नीरस है।
उद्धव- प्रभु सीख लिया है प्रेम करना। अब मेरी प्रीति आपके चरणों में ही है। मैं स्वयं कृष्णमय होकर आ रहा हूँ।