stri hone ke bad bhi lekhika ke liye man vyagya adarsh kyun nahi ban paya

मित्र आपका प्रश्न स्पष्ट नहीं हो पा रहा है। आपसे निवेदन है कि उसे दोबारा लिखकर दें। परतुं यदि यह मन्नू भंडारी द्वारा रचित कहानी एक कहानी यह भी से लिया गया है, तो उसमें लेखिका  के लिए उसकी माँ व्यक्तित्व कभी आदर्श नहीं बन पाया था। उनकी माँ का जीवन पति और बच्चों से आरंभ होकर उन्हीं पर समाप्त होता था। माँ हमेशा चुप और शांत रहती थी। पति की हर उचित-अनुचित बात को वह बिना कुछ कहे मान लिया करती थीं। बच्चों से उन्हें सहनशीलता की प्रेरणा मिली हो परन्तु जीवन में कुछ कर गुजरने के लिए वह प्रेरणा स्रोत नहीं थी। अतः स्त्री होने के बाद भी वह अपने माँ के व्यक्तित्व को आदर्श के योग्य नहीं समझती।

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