rahiman dhaga prem ka mat todo tut jae tute se phir na jude.....jude ghaat band jae ka kya matlab hota h....???

रहीम जी कहते है कि प्रेम का जो रिश्ता होता है, वो कच्चे धागे की तरह होता है।  कच्चे धागे में ज़रा सा भी झटका लगता है, वो टूट जाता है। अगर आप उस धागे को जोड़ने का प्रयास करते हैं, तो उसमें पहले के समान भाव नहीं रहता। उसमें एक गाँठ पड़ जाती है। वैसे ही प्रेम का रिश्ता भी होता है। एक बार टूटने पर आप लाख उसे जोड़ने का प्रयास करें मगर उसमें पहले जैसी सहजता नहीं रह जाती है।

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