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'हिमालय की बेटियाँ' पाठ में लेखक नागार्जुन जी ने हिमालय और उससे निकलने वाली नदियों के विषय में वर्णन किया है। हिमालय और उसके आस-पास के क्षेत्रों का बहुत रमणीय वर्णन देखने को मिलता है। प्रकृति के विषय में लेखक की संवेदनशीलता का भी पता चलता है। उन्होंने अपने इस पाठ में हिमालय को पिता के रूप में, नदियों को उसकी पुत्रियों के रूप में और समुद्र को हिमालय के दामाद के रूप में चित्रित किया है। लेखक के मन के भाव जैसे शब्द बनकर इस गद्य में उभर रहे हैं। प्रकृति का बहुत सुंदर मानवीकरण किया गया है। ऐसा लगता है कि प्रकृति भी हम मानवों की ही भांति व्यवहार कर रही हो। नदियों के प्रति पल-पल बदलती लेखक की सोच से हम अवगत होते हैं। वह विभिन्न स्थानों पर इन्हें भिन्न रूपों में देखते हैं। उनके लिए यह कहीं पर बेटी, कहीं पर माँ तो कहीं पर प्रेयसी के समान प्रतीत होती है। लेखक ने एक दार्शनिक व्यक्ति के समान हिमालय और उससे निकलने वाली नदियों के विषय में अपने विचार व्यक्त किए हैं। यह कहानी हमें नदियों के महत्व को समझाने का प्रयास करती है।

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