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3. 
(क) पाठ में जिस बचपन का वर्णन किया गया है , वह अभी के बचपन से बहुत ही भिन्न है । पाठ में लेखक ने बताया है कि उनके समय में बच्चे की परवरिश प्रकृति के सनिध्य में होती थी , वहीं आजकल बच्चे प्रकृति से कोसों दूर रहते हैं । वे केवल कृत्रिम चीजों से घिरे रहते हैं । और इस अंतर का प्रभाव हमारे जीवन मूल्यों पर भी पड़ता है , क्योंकि हमारे जीवन मूल्य हमारे परवरिश पर ही निर्भर होते हैं । आजकल के बच्चों में सबसे बड़ी समस्या यह है कि , वे प्रत्यकस रूप से मुखर नहीं हो पाते हैं , अपने आपको अभिव्यक्त नहीं कर पाते हैं । 

(ख) प्रस्तुत पाठ में जो व्यंग्य निहित है , उसका मुख्य केंद्र ही मानसिक पराधीनता है । और इसका सबसे अच्छा उदाहरण यह है कि एक रानी के आने के मौके पर एक पत्थर की मूर्ति की टूटी हुई नाक को लगाने के लिए किसी जीवित व्यक्ति के नाक को इस्तेमाल करने की सलाह दी जाती है । ऐसा इस कारण से होता है क्योंकि मूर्ति की नाक बिल्कुल सजीव दिखनी चाहिए । अतः हमारा मानसिक पराधीनता से मुक्त होना बहुत आवश्यक है । अगर हम मानसिक रूप से पराधीन रह जाते हैं , तो हमारे लिए किसी भी आजादी का कोई महत्व नहीं है , और अभी हमारी भी स्थिति कुछ ऐसी ही है । 

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