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मित्र मास्टर प्रीतमचंद सख्त अध्यापक थे। मास्टर प्रीतमचंद से सभी बच्चे डरते थेे क्योंकि प्रीतमचंद मास्टर का रूप-रंग ऐसा था, जिससे बच्चों का डरना स्वभाविक था परन्तु उसके साथ उनका स्वभाव भी कम डराने वाला नहीं था। वह बच्चों के साथ बड़ी सख्ती से रहते थे। वह बहुत कठोर स्वभाव के व्यक्ति थे। दया-ममता जैसे उनके हृदय को छू तक नहीं गई थी। एक दिन मास्टर प्रीतमचंद ने कक्षा में बच्चों को फ़ारसी के शब्द रूप याद करने के लिए दिए । परन्तु बच्चों से यह शब्द रूप याद नहीं हो सके। इस पर मास्टर जी ने उन्हें मुर्गा बना दिया। बच्चे इसे सहन नहीं कर पाए कुछ ही देर में लुढ़कने लगे। उसी समय सरल और नरम हृदय के हेड मास्टर जी वहाँ से निकले और बच्चों की हालत देखकर सहन नहीं कर पाए और पीटी मास्टर को मुअत्तल कर दिया।  प्रीतमचंद को निलंबित करना एक तरह से उचित ही था, क्योंकि बच्चों को इस तरह फ़ारसी विषय तो क्या, कोई भी विषय नहीं पढ़ाया जा सकता है। शारीरिक दंड देने से या बच्चों को प्रताड़ित करने से, बच्चों को पढ़ाया नहीं जा सकता है। अत्यधिक डर से इससे बच्चे दब्बू हो जाते हैं। इस प्रकार बच्चों के मन में शिक्षकों और शिक्षा के प्रति भय समा जाता है। इससे पढ़ाई के प्रति उनकी इच्छा और जागरूकता समाप्त हो जाती है।

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