kya khanpan ki mishrit sanskriti ke sakaratmak paksh hai? agar haan to fir lekhak ise lekar pareshan kyo hai?
हमारे मित्र ने सही उत्तर दिया है। खानपान की मिश्रित संस्कृति आज के जीवन में सकारात्मक पक्ष लिए हुए है। परन्तु इसके कारण मुख्य व्यंजन अपना मूल रूप खो रहे हैं। साथ ही कई व्यंजन समाप्त हो रहे हैं। लेखक की परेशानी की वजह यही है। जिस तरह से समाज में परिवर्तन हो रहा है। इसका प्रभाव खानपान की संस्कृति पर पड़ रहा है। पहले स्त्रियाँ घर में रहकर नाना-प्रकार के व्यंजन बनाती थी। परन्तु आज वे नौकरीपेशा हैं। वह अपनी रसोई में उन्हीं व्यंजनों को स्थान दे रही हैं, जो तुरंत बना लिए जाते हैं। इसके कारण कई भारतीय व्यंजन लुप्त हो रहे हैं। यदि ऐसा रहा तो एक दिन हमें इनके नाम भी याद नहीं रहेंगे। लेखक की यही चिंता भी है।