kabir  ne  aapne  sakhi  mein  bhakti  ke   raasthe  par  pakhando  ka  virodh  kyo  aur  kaise  kiya  hai?

मित्र कबीर दास जी बाह्य आडंबरों तथा सामाजिक कुरीतियों के विरोधी थे। उन्होंने किसी भी धर्म की रूढ़ियों को स्वीकार नहीं किया है अपितु उनका खंडन किया है। वे कहते हैं कि ईश्वर की भक्ति तो सच्चे मन से करनी चाहिए। दिखावटी माला फेरने से कुछ प्राप्त नहीं होगा। प्रभू तो सच्चे प्रेम के भूखे होते हैं। अगर हम मन में कपट रखकर सिर्फ ज़ुबान से भगवान का नाम स्मरण करेंगे तो इससे बड़ा पाखंड और कोई नहीं है। 

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