हिमालय और हम

अरूणोदय की पहली लाली इसको ही चूम निखर जाती ।
फिर संध्‍या की अंतिम लाली इस पर ही झूम बिखर जाती ।।
इन शिखरों की माया ऐसी
जैसे प्रभात, संध्‍या वैसी
अमरों को फिर चिंता कैसी ?
इस धरती का हर लाल खुशी से उदय-अस्‍त अपनाता है ।
गिरिराज हिमालय से भारत का कुछ ऐसा ही नाता है ।।

इस कविता का सारांश अपने शब्दों में लिखे

मित्र
 सूर्य उदय होने के बाद अपनी पहली किरण हिमालय पर डालता है और शाम को जब अस्त होता है तब भी  उसकी किरणों मेंं हिमालय बहुत सुंदर दिखाई देता है। हिमालय केेेेे ऊंचे चट्टानोंं के बीच मेंं सुबह और शाम एक जैसी रहती है। वहांं रोशनी का कोई प्रभाव नहीं पड़ता। हिमालय तो सदियों से इसी प्रकार खड़ा है। भारत देश हिमालय पर्वत से हमेशा कुछ ना कुछ प्राप्त कर रहा है। हिमालय पर्वत से भारत का नाता बहुत पुराना हैै।

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