Anuched on this topic

उत्तर - 

प्रकृति भगवान द्वारा दी गई बहुमूल्य भेंट है। प्रकृति, मनुष्य को सदैव देती रही है। हमने प्रकृति का इतना दोहन कर लिया है कि इसने अपना मैत्री भाव छोड़कर विकरालता को धारण कर लिया है। जब से मनुष्य पृथ्वी पर उत्पन्न हुआ है, उसने प्रकृति का दोहन किया है। आदिम युग में वह जानवरों की तरह ही गुफाओं या कंदराओं को अपना निवास स्थान बनाता था। धीरे-धीरे उसने अपनी जीविका के लिए खेती-बाड़ी और पशु-पालन आरंभ किया। उसका गुफाओं में रहना अब संभव नहीं था। उसने अपने आवास स्थान के लिए वनों को काटना आरंभ किया। आगे चलकर एक मामूली झोंपड़ी में आराम नहीं मिला, तो उसने पक्के घरों तथा इमारतों का निर्माण किया। मनुष्य की बढ़ती आबादी ने नदियों का ह्रास करना आरंभ कर दिया। उसने नदियों को इस तरह से प्रदूषित किया कि आज नदियों का जल पीने लायक नहीं बचा है। इस दूषित जल से अनेक बीमारियों का जन्म हुआ है। वनों के अंधाधुंध कटाव ने प्रकृति में असंतुलन पैदा कर दिया है। जिसके फलस्वरुप प्राकृतिक आपदाएँ जैसे भूकंप, बाढ़ों, सुनामी ने अपना प्रकोप दिखाना आरंभ कर दिया है।

बढ़ते प्रकृति दोहन से जलीय, थलीय एवं वायुमंडलीय प्रदूषण बढ़ गया है। औद्योगिक कचरे के फैलाव के कारण अनेक समस्याओं व बीमारियों को आमंत्रण मिला है। वनों के कटाव से भूमि के कटाव की समस्या और रेगिस्तान के प्रसार की समस्या सामने आई है। वनों के अत्यधिक कटाव ने जंगली जानवरों के अस्तित्व को संकट में डाला है। ऊर्जा के उत्पादन के लिए अचल संपदा का स्थायी क्षय हुआ है। रसायनों के अत्यधिक प्रयोग ने मिट्टी संबंधी प्रदूषण को बढ़ाया है। इन सभी समस्याओं पर यदि अभी ध्यान नहीं दिया गया, तो आगे चलकर ये सभी समस्याऐं विकरालता की हद को भी पार कर जाएँगी। आज पर्यावरण में बढ़ते प्रदूषण के कारण नित नई बीमारियाँ अपना मुँह फाड़े मनुष्य को काल का ग्रास बनाने के लिए तैयार हैं। एक बीमारी से हम निजात पाते नहीं कि नई बीमारी आ खड़ी होती है।

बढ़ते प्रदूषण ने पर्यावरण में मौसम संबंधी परेशानियाँ खड़ी कर दी हैं। इसका परिणाम ये हो रहा है, वातावरण में कार्बन डाईऑक्साइड की मात्रा बढ़ रही है। पृथ्वी का तापमान अधिक हो गया है। ऋतुओं पर भी असर देखने को मिल रहा है। गर्मी के मौसम में गर्मी और ठंडी में ठंड अधिक पड़ने लगी है। किसी मौसम में अत्यधिक बरसात से बाढ़ की स्थिति बन जाती है और हज़ारों जानों-माल का नुकसान होता है। बारिश न होने की वजह से कई स्थानों में गाँव के गाँव सूखे की चपेट में आ जाते हैं। इससे हमारी प्राकृतिक व्यवस्था छिन्न-भिन्न हो रही है।

हमें चाहिए कि हम इन सभी बातों को ध्यान में रखते हुए अपनी आदतों को सुधारें व अपनी व्यर्थ की प्रगति पर लगाम लगाएँ। अपनी इस प्रकृति का व्यर्थ में दोहन न करें, उसे एक सहचरी की तरह प्यार व सम्मान दें। हम जितना उसका सम्मान करेंगे, वह भी हमें उतना सम्मान व प्यार देगी। अपने कर्त्तव्यों का निर्वाह करते हुए अत्यधिक पेड़ लगाएँ। पेड़ों के कटाव को रोकें, वातावरण में प्रदूषण को न फैलाएँ, पानी का मूल्य जानकर उसका उपयोग करें। रासायनिक जैविक कचरों को नदियों व समुद्रों में न डालें। कारखानों पर रोक लगाएँ। वनों के विनाश को रोकने के लिए उचित कानून बनाएँ। खेती की पैदावार बढ़ाने के लिए रसायनिक खाद के स्थान पर प्राकृतिक खाद का प्रयोग करें। लोगों में बढ़ते प्रदूषण के प्रति जागरुकता पैदा करने का प्रयास करें। यदि हम सब इस तरह के कार्यों को करने का बीड़ा उठाते हैं, तो हम प्रदूषण की समस्या पर जल्द ही काबू पा लेंगे व इस पृथ्वी को दुबारा स्वर्ग की तरह सुंदर बना पाएँगे।

  • 0
Pls answer
  • 0
What are you looking for?