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मित्र

पर्वतों में झरनों की शोभा का वर्णन करते हुए लेखक कहते हैं कि पहाड़ों में गिरते हुए झरने ऐसे प्रतीत हो रहे हैं मानों पहाड़ों से तीव्र वेग से झाग बनाती हुई मोतियों की लड़ियों-सी सुन्दर पानी की धारा झर-झर करती हुई बह रही है। ऐसा लगता है बादल पक्षी की भांति पंख लगाकर उड़ गया हो और सिर्फ झरनों की आवाज ही शेष सुनाई दे रही है।
 

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