1) swatantrata hamara janam sidh adhikar hai paragraph in hindi.
2) bhaktikal ke kisi ek kavi ka chitra chipkakar unki rachana
                 PLZZ I WANT BOTH ASNWERS........

 

1. स्वाधीनता हर मनुष्य का जन्मसिद्ध अधिकार है। इसको पाने के लिए यदि मनुष्य को लड़ना भी पड़े, तो सदैव तत्पर रहना चाहिए। पराधीनता वो अभिशाप है, जो मनुष्य के आचार-व्यवहार, उसके परिवेश, समाज, मातृभूमि और देश को गुलाम बना देते हैं। भारत ने बहुत लंबे समय तक गुलामी के शाप को सहा है। सर्वप्रथम वो मुगलों के अधीन रहा। उनके द्वारा भारत ने अनेक अत्याचार सहे परन्तु उसकी नींव नहीं हिली। इसका मुख्य कारण था 'मुगल' पहले लूटमार के मकसद से आए थे। परन्तु धीरे-धीरे उन्होंने यहाँ रहना स्वीकार कर हमारे देश पर शासन किया। यदि कुछ मुगल शासकों को अनदेखा कर दिया जाए, तो बाकि मुस्लिम शासकों ने यहाँ की धन-संपदा का शोषण नहीं किया। मुगल यहाँ अपना शासन चाहते थे। लूटमार करना उनका उद्देश्य नहीं था। मुगलकाल के समाप्त होते-होते अंग्रेज़ों ने यहाँ अपने पैर पसारने शुरु किए। पहले-पहल उन्होंने भारत को व्यापार के लिए चुना परन्तु उनका उद्देश्य बहुत बाद में समझ में आया। व्यापार करते हुए उन्होंने पूरे भारत को अपने हाथों में समेटना शुरु कर दिया। उनका उद्देश्य यहाँ की अतुल धन-संपदा को अपने देश पहुँचाना था। उन्होंने ऐसा किया भी। भारत का विकास और उन्नति उनका उद्देश्य कभी नहीं था। इनके शोषण से सभी राज्यों के राजा से लेकर भारतीय जनता भी दुखी हो उठी थी। उनसे स्वयं को आज़ाद कराने के लिए भारत व उसके नागरिकों  को बहुत सी आहुतियाँ देनी पड़ी है, तब जाकर देश आज़ाद हुआ है। इसलिए स्वतंत्रता के महत्व को नकारा नहीं जा सकता है।  
2. मित्र हम चित्र नहीं दे सकते हैं। इसके लिए आपको स्वयं प्रयास करना पड़ेगा।
रामचरितमानस तुलसीदास द्वारा रचित एक महाकाव्य है। भारतीय संस्कृति में इस रचना का बहुत महत्व है। तुलसीदास से पहले वाल्मीकि जी ने रामायण की रचना संस्कृत भाषा में की थी। उनकी प्रेरणा से तुलसीदास ने अवधी भाषा में इसकी रचना कर इसे भारतीयों के दिलों में सदा के लिए अमर कर दिया। एक किवदंती के अनुसार आरंभ में तुलसीदास रामचरितमानस की रचना संस्कृत भाषा में करना चाहते थे। परन्तु वह पूरे दिन जितने श्लोकों का निर्माण करते परन्तु अगले सुबह देखते तो श्लोक गायब हो जाते। अतः शंकर जी ने उन्हें स्वप्न में आकर जनभाषा (अवधी) में लिखने की प्रेरणा दी। कहा जाता है कि उसके बाद उन्होंने पूरे ग्रंथ को अवधी भाषा में लिखा। जिसे साधारण जन ने सहर्षता से अंगीकार कर लिया। यह गेय रचना है, जिसे कंठस्थ किया जा सकता है। इसे सात कांडों में विभक्त किया गया है, जिसमें बालकांड, अयोध्याकांड, अरण्यकांड, किष्किन्धाकांड, सुंदरकांड,  लंकाकांड तथा उत्ररकांड है। यह रचना राजा राम पर केंद्रित है। इसमें अयोध्याकांड सबसे बड़ा और सुंदरकांड सबसे बड़ा माना जाता है। यह अलंकारी रचना है जिसमें अलंकार का सुंदर प्रयोग किया गया है। यह रचना हमें सिखाती है कि हमें अपने बड़ों का आदर करना चाहिए, उनकी आज्ञा को शिरोधार्य करना चाहिए, अपने छोटों से प्रेम तथा उनके सुख के लिए सदैव तत्पर रहना चाहिए, असत्य और अर्ध का मुँह तोड़ जवाब देना चाहिए, मित्र की हर संभव सहायता करनी चाहिए, स्त्री का मान रखना चाहिए, अहंकार का त्याग करना चाहिए, क्रोध नहीं करना चाहिए, दूसरों की सहायता करनी चाहिए। इस तरह तुलसीदास जी भगवान राम के चरित्र द्वारा नैतिक शिक्षा पर भी बल देते हैं। यह रचना जहाँ अशांत मन को शांति प्रदान करती है, वहीं जीवन के कठिन संघर्षमय समय में निर्भयता और दृढ़तापूर्वक बढ़ने का साहस प्रदान करती है।

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